Friday, February 19, 2021

शिवाजी महाराज ऐकताय ना!

 


                 शिवाजी महाराज ऐकताय ना!

      ऐसे आज स्वार्थी मोठे नेते आपले नावाचा वापर आणि खोटे इतिहासचा वापर करुण मुस्लिमद्वेष फैलावून झाले.पक्ष स्थापन केले. तिथि आणि तारखेचे वाद करुण दोन गट केले.आज सत्तेसाठी एकत्र येवूनही आजही राज्यभर एक शिवजयंती एका ताराखेला साजरी करू शकत नाही. तू तुझी तारखेची साजरी कर, मी माझ्या तिथिची साजरी करणाऱ्याच्या पुरख्याना महाराज आपली समाधी ही माहित नव्हती. महात्मा ज्योतिराव फुले यांनी आपली समाधी शोधून काढ़ली.साफ सफाई करुण फुले समाधी वर वाहिली होती.अश्या वेळी कोणी आपल्या समाधी वर फुले लाथेने हटवून त्रागा करणारे हिंदू म्हणविनारे भट होते.म्हणून आजही कोणीच भटाना त्रास देत नाही.कृष्णा भास्कर कुलकर्णी याने आपल्या माथ्यावर केलेल्या तलवारीचे वार बाबत कधीच सर्व भटाना जबाबदार धरत नाही.ज्यांनी आपल्या राज्यभिषेकास विरोध केला होता आणि आपल्याला राजा मानन्यास तय्यार ही नव्हते.आजही अनेक आपली बदनामी आपली प्रतिमा मलिन करण्याचे सातत्याने प्रयत्न आज दिवसाखेर सुरुच आहे.
      अश्याच एका फेसबुक वरील आपले अवमान करन्यार्या पोस्टने मोहसिन शेख तरुण इंजीनियर जेंव्हा नाव विचारुन का कट्टर हिंदुत्ववादी हिंदुराष्ट्र सेनेच्या कार्यकर्त्या कडून होते.एका आईबापाचा आधार हिरावला जातो तेंव्हा मला आपल्याला काही प्रश्न विचारावेसे वाटते. 
     खर सांगा आपण रायगड वर आपल्या महला समोरच मस्जिद का बांधली होती?
      रुस्तमेजमा जातीने मुसलमान असतांना  आपला गुप्तहेर हेच समजल नाही.
      नुरखांन बेग सव्वा लाख फौजेचा सरसेनापति का म्हणून महाराज आपण नेमला होता ?
हा इब्राहिम गार्दी तोफाखान्याची जबाबदारी मुसलमान असताना कसा काय स्वीकारतो ?आपण मुसलमानाला एवढी मोठी जबाबदारी दिलीच कशी ?
       दौलतखानला आरमारची जबाबदारी मी समजू शकतो,कारण समुद्र गमन हिंदू धर्मात पाप आता आहे की नाही माहित नाही परंतु आपल्या काळात होती.स्वातंत्र पूर्व काळात गोलमेज परिषद नंतर इंग्लैंड वरुण  बालगंगाधर टिळक यांना समुद्र गमन केल्याची हिंदू धर्मशास्त्र नुसार शिक्षा देण्यात आली होती.या कारणाने मुसलमानच आपल्या आरमार दलात असणार हे सांगण्यास त्या वेळी कोणा ज्योतिषाची गरज नव्हती ! कबूल आहे, तरीपण आपण आरमार उभारले.
      आपला वकिल हैदर काजी, बाबा याकूत आपले गुरु,मदारी मेहत्तर आपला अंगरक्षक, घोडदल प्रमुख सीढ़ी वहाब,महाराज सगळे विस्वास पात्र महत्वाची जबाबदारी आपण मुसलमान असणाऱ्या व्यक्तिवर दिली कशी ?
महाराज ऐकताय ना ! कारण तुम्हाला ठाऊक होते.जे भी काम मुसलमान करतो बड़े इमाने ऐतबाराने करतो.अंध श्रद्धालू नसल्याने बड्या बहादुरी ने दुश्मनी सैन्याचे पराभव करतो.
     महाराज आपल्याला राजा म्हणून कोणी संबोधले,वाघ नख़्या कोणी दिल्या, आपले तैल चित्र कोणी काढले,इतिहास कोणी काय काय उपाधी दिल्या हे सांगत बसणार नाही.
     खंत महाराज,अफजलखानच्या कोठल्या पासून ते शाहस्ते खानच्या बोटा पर्यंत आपल्या इतिहासात बंदिस्त करुण,आज आपल्या नावाने आज हिन्दू मुसलमान द्वेष जेंव्हा हिंदुचे रक्षक म्हणून पसरविला का जातो हेच कळत नाही .
      महाराज हा जो भारत देश आहे है एकसंघ जो आजही आहे यात अनेक पीर संताचा ,अनेक बलिदान देणाऱ्यां स्वातंत्रविराचा मोठा वाटा आहे.आपण देश घडवला.या देशसगळ्याना सगळे कळतय,पण स्वार्थाच्या प्रेमापोटी वळत नाही. मनात बरच प्रश्न सतावत होते म्हणून आज चला ताराखेच्या का होईना शिवाजी महाराज्यांच्या शिवजयंतीला मन मोळले सोशल मीडिया आपल्याशी संवाद साधला.भविष्यात हिन्दू मुस्लिम सलोख्याचे संबध आणखी मजबूत होतील हे निश्चितच..हे मात्र खरे. 

अफजल सय्यद, अहमदनगर,
पक्का टक्का महाराष्ट्रीयन मुसलमान

बुढापा समझने इंसान की बुढा होना जरूरी है !!!

 


बुढाबुढापा समझने इंसान की बुढा होना जरूरी है !!!


इंसान  बुढा कब होता है?

 यह सवाल हम सबकी बडी परेशानी में डाल देता है. 

क्या मैं बुढा हो गया हूँ ? 

ये जानने की कोशिश ही हम सबको बड़े अजीब उलझन में डाल देती है.

क्या मैं सच मे बुढा हुँ? 

मेरी उम्र के सलमान,शाहरुख,आमिरखान देखकर दिल है के मानता नही के मैं बुढा हुआ हूँ .मगर आईने के सामने से जब भी गुजरता हुँ, दाढ़ी की सफेदी और चेहरे की झुर्रियां अपनी औकात में रहने के लिए मजबूर कर देती है.

यह अलग बात है के,जिस्म के २०६ हड्डियो का दर्द कनारती पिपानी बजने पर कही बार दर्द की गोलियां लेने मजबूर कर देता है.

साथ दर्द की दवाइयां न वक्त न लेने की वजह से बच्चे मुझको डाँटते कहना मुनासिब या उचित नही,पर स्नेह,प्यार,फिक्र से बातचीत करते है.जब कोई बच्चा या उन्हीका दोस्त चुगली करता यह भी कहना मुनासिब नही, वॉलीबॉल खेलते जब कभी गलती से मैदान में बॉल लेते वक्त बॅलन्स छूट जानेसे जमीन पर गुलाटी खाली तो फ़िक्रमंदीसे शिकायत करते है.

"अच्छा हुआ थोडे में मुसीबत टली.आज चाचा बहोत जोर से गिर गए.अच्छा हुआ कुछ लगा नही." 

यह हदर्द की बात सुनते ही,मेरे अपने तजर्बे या अनुभव को महसूस करते,यकीनन कोई भी औलाद को लगता हैं, उसे अल्लाउदीन का जीन सामने दिल की फिक्र को समझकर सामने आकर ये भी ना कहे

 "क्या हुक्म है, मेरे आका? "

बस झट से अब्बा को सामने लाकर खड़ा करे. ताकी सारी भडास अब्बापर  निकाल सके. लेकिन अच्छा है ,चिराग अल्लाउद्दीन के पास ही रहा,अब ना अलाउद्दीन का चिराग है ना जीन.वर्ना वो सारी फिक्रमंदीवाली भडास मेरा ही बच्चा मुझ पर निकालता. गर मेरे बच्चे के पास अल्लाउद्दीन का होता.जब तक उसकी और मेरी मुलाकात होती.बहोत सारा गुस्सा पीकर नम हो जाता है.यह दावा मैं अपने तजुर्बे से कह रहा हूँ. 

     मुझे याद है! मेरी अम्मा को पैरालिसिस होने का असर बाये हाथ पैर पर हो गया था.कुछ दवाइयों और कुछ मालिश से लगभग खड़े रहकर चल सकते थे. मगर पेरेलिसिस का असर से चलते वक्त गिर जाने के असरात बड़े थे.अम्मा को चलते आना ये खुशी हम लोगों केलिए थी. अम्मा धीरे धीरे घर से बाहर निकलने लगे.अब बाहर की हद इस तरह बड़ी के,एक रोज मैं घर पर जल्दी चला गया. घर मे अम्मा नजर नही आये.

बीवी से पूछा "अम्मा कहा है." 

उसने जवाब दिया "बहोत देर से नही दिख रहे है.शायद आज पड़ोस में बैठे होंगे."

मैंने आसपड़ोस पूछताछ की ,लेकिन दिखाई नही दिये.अब पैरोतले की जमीन खिसक गयी थी.क्योंकि बाहर बारिश हो रही थी.रास्ते खराब होने के वजह से कीचड़ हो चुका था.दिलो दिमाग पर दुश्मन ना सोंचे वो खयाल में ले जा रहा था.

     सब रिस्तेदारों के घर जाकर तहक़ीक़ सुरु की,मेरा ही गुस्सा अब आपे से बाहर हो रहा था.कही गिर तो नही गये.घर पर किसीको कुछ तो कहते.अब कहा गए होंगे.सोंच रुकने का नाम ही नही ले पा रही थी.आखिर अम्मा अपने बहन के यहाँ नजर आये. तो गुस्सा पूरी तरह फुट पड़ा था.अम्मा से ऊंची आवाज में बात हो रही थी.

"कम से कम घर में कुछ बता कर आते." 

मेरे पूछने पर वो जवाब देते."क्या तू आने देता!"

बहोत देर बहस चलती रही.अम्मा हार कहा माननेवाले थे.आखिर माँ जो ठहरी! 

    अम्मा सहीसलामत देखकर पहले ही हमने राहत की सांस ली थी.मगर ग़ुस्सेका उबाल जो था. तो निकलने पर अब खामोश हो चुका था. आखिर घर मे सब को सख्त ताकीद देनी पड़ी की अम्मा पर ध्यान दिया जाए.अब्बा पर किसी का कंट्रोल चलता ही नही था.मेरी अपनी जुबान तो हमेशा उन्ही के सामने खामोश रहती.पर एक बात हमेशा से मेरी अपनी जुबान पर बार बार जुबान पर  रहती, जो आज मेरे बच्चो के जुबान से सुनाई  देती है और मेरे कानोपर भी आती रहती.जब किसी दोस्त के सामने  बच्चे शिकायत करते है और दोस्त हमदर्दी जतलाते हुए हमें सेहत की फिकर करने के लिए समझाते है.

"अम्मा और अब्बा सुनतेच नही." 

अक्सर बुढे माँ बाप के बारे में भी ये बच्चों की आम राय है की "वो सुनतेच नही."

     मगर माँ बाप लंबी जिंदगी जो जी लेते है और जिसके तजुर्बे से वो यह तय करते है. अपने औलाद को अपनी वजह से कोई तकलीफ ना हो जाये,जो उन्होंने झेली है.वह अपनी फिक्र खुद लेना चाहता है.बिस्तर पर बीमार पडने का डर दिल को डराने लगता है.अपनी महंगी दवाइयां का बोझ अपने बच्चे पर ना पड़े इसका भी डर बने रहता है. अपने किसी वजह से बच्चे के हँसते खेलते संसार मे कोई गम भरा साया ना असर कर जाये! उससे बचाने के लिए जिस्म में दर्द छुपाये चेहरे पर मुस्कुराहट लिए जिंदगी बसर करता है.कुछ जिंदगी की छोटी बड़ी गलतियाँ  का अहसास और असरात कबुल कर रब का एहसान मानते हुए, किसीसे बिना शिकायत किये,दुनिया को अलबिदा करने का इंतजार करता है.

     लगभग हर माँ बाप  और उसके औलाद की जिंदगी एक सी ही होती है.मगर सच ये भी है.अपने जवानी में अपने बूढ़े माँ बाप की दर्द और फिक्र समझमे आती ही नही.दिखाई देते है तो सिर्फ उनकी चिड़चिड़ापन और हटेलापण.यही बात तब ही समझमे आता है,तब इंसान बुढा हो जाता है.जाने अनजाने में हमारेसे  बहोत सारी गलतियो अपने माँ बाप को तकलीफे सहने पड़ती.जब समझ में आती ,बहोत देर हो जाती है .माँ बाप दुनिया से चले जाते है और हम बुढापे की जिंदगी जीना सुरु कर देते है. 

     जिंदगी के बचपन,जवानी और बुढापा ये तीन मरहले(टप्पे) है.जिसमें बचपन से जवान भी गुजरता और बुढा भी.इसलिए बचपन के दुख दर्द को समझना आसान होता है.

जवानी गलतियाँ और दर्द को भी समझना आसान होता है,क्योंकि बुढापा जवानी से गुजरता है.

लेकिन बुढापे दुख दर्द को सनाझना आसान नही होता.जब तक इंसान को खुद को बुढापा नही आता. बुढोंकी नसीहते बच्चो को शिकायते लगने लगती है.बदलते वक्त के साथ उनकी हर बात पुरानी बच्चे और जवानों के दिल मे घर कर देती है और बुढो की समझने के लिए,कोई किताब है ना कोई सिलयाबस, ना कोई ट्रेनिंग है ना कोई क्लास.इसीलिए इतना आसान नही बुढापे को समझना! हकीकत जिंदगी मे बुढापे को गर है समझना ,इंसान को बुढा होना जरूरी है.



अफजल सय्यद

अहमदनगर