Wednesday, November 18, 2020

बचपन वक्त से पहले ही बडा हो जाता है!तो....


बचपन वक्त से पहले ही बडा हो जाता है!तो....


     बचपन की नटखट यादे हर इंसान जब तक उसकी जिंदगी होती है,वो कई बार याद कर जी लेता है.

कभी माँ बाप और रिश्तेदारों के संग,कभी दोस्तों के संग,कभी आस पड़ोस, मोहल्लेवालो के संग,स्कूलों के दोस्त,मास्टरों के संग,खेल कूद के मैदानों संग.अच्छा हो या हालात से बदतर बचपन हर शख्स यादगार बना ही जाता है.जिसे याद कर कोई भी इंसान मायूस नही होता.इंसान की खासियत तो ये भी है के,वो अपने साथ अपनो का औलाद,भाई बहन,नाती पोती,भी बचपन आसपड़ोस के जो जो करीबी है,जानवरों हो परिंदों सभी का बचपन यादों में बार बार यादों बस जाता है.

     हाथ मे बहोत सारे गुब्बारे (बलून,फुग्गे)लिए लड़की बार बार मेरे शॉप के सामने के रास्ते से इधर से उधर गुजर रही थी. हर बार शॉप में खड़े कस्टमर को देख खड़े रहती शायद कोई गुब्बारा उसीसे खरीदे.हर बार वो आती,यो मैं अपने काम मे व्यस्त रहता.मगर उसके हाथ मे पीले रंग के मुस्कुराते गुब्बारे उस लड़की के आने जानेवाली हरकत का अहसास कराते.अब मैं थोड़ीसी फुरसत में था.फिर वो लड़की मुस्कुराते गुब्बारों को हाथ मे शॉप के सामने आकर रुक गयी.उसकी के साथ एक कस्टमर भी आ गया. गुब्बारेवाली लड़की ने गुब्बारा खरीदने के लिए हाथों से ईशारे से चेहरे पर मासूमियत दिखाई दे रही थी.शायद उसी मासूमियत को देखकर शॉप की पायरी चढते कस्टमर ने गुब्बारेवाली लडकी से गुब्बारे की कीमत पूछी,तो लड़की ने दो उंगलियाँ दिखाई. शॉप की पायरी चढ़ते वक्त गुब्बारेवाली लड़की उसके पीछे थी,इसलिए उसे कुछ समझ मे नही आया. 

     गुब्बारेवाली लडकी ने शॉप में खड़े कस्टमर को हाथ हिलाकर गुब्बारे लेने के लिए इशारे में कहा, फिर कस्टमर ने कीमत पूछी अब के बार लड़की ने फिर दो उंगलिया दिखाई. अब उसकी हरकत मेरी समझमे आया की गुब्बारेवाली लड़की जबान से बोल नही सकती.कस्टमर के भी बात समझमे आयी,गुब्बारे बेचनेवाली मासूम लड़की मुक्की है. ये अहसास होते ही दयाभाव  रहम हमारे दिल पे तारी हो गया.क्यो की हमे अपने बच्चे याद आये और उनका और हमारा बचपन.

     अच्छे कमाने की उम्र तक हमारे बच्चों को या हमे हमारे माँ बाप ने भीड़वाले रास्तो पर जाने से मना करते थे.आज भी हम अपने बच्चो को संभाल कर चलने की हिदायत देते है.दीपावली फेस्टीवल होने के कारण सड़क पर कपड़ा बाजार को खरेदी जाने आने वाले की ट्राफिक थी  ये लडक़ी तो बार बार मेरे शॉप के सामने के भिड़ावाली सड़क से अकेले ही हाथ मे गुब्बारे बेचने के लिए आ जा रही थी. मैने लड़की के हाथ मे गुब्बारे पर नजरें डाली (जो फोटो में दिखाई दे रहे है) तो लग रहा था,वो मुझसे मुस्कुराते हुए मानो समझा रहे थे.कभी बचपन वक्त से पहले बडा हो जाता है!तो....


अफजल सय्यद

12/11/2020

फोटो सैमसंग जे 2

अहमदनगर

 

खेलब चाहे जो भी हो मैदान में खेलना जरूरी है.मैदान , मोबाईल और हम.....



 खेलब चाहे जो भी हो मैदान में खेलना जरूरी है.मैदान , मोबाईल और हम.....

आप के सामने एक छोटे से वॉलीबॉल मैदान की तस्वीर है और कुछ बच्चे कहना मुनासिब नही,खिलाडी कहना ही बेहत्तर होंगा. जो मैदान की साफ सफाई करते नजर आ रहे है.ऐसे नजारे ,ऐसी हरकत बढ़ते हुए शहरीकरण के देखने ही नही मिलती.याने शहरे मैदानलेस बन गयी है या बसाई जा रही है.और जब शहरे मैदानलेस होंगी तो यकीनन बच्चो  के मस्ती की शक्लें भी बदलेंगी. बच्चा हसता खेलता नही,बल्कि चीड़ चिड़ा बन जायेगा.जिसके असरात आजकल के बच्चे में दिखते है.बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ गया है.

ये क्यों हो रहा है? 

मोबाइल! क्या ये सच है?

आज के दौर में मोबाइल एक गुमानी दुनिया,भरामवाली दुनिया, चमकीली दुनिया,वर्चुअल वर्ल्ड जिसका हर कोई मर्द हो या औरत,बूढा हो या बच्चा दीवाना बन गया है.घंटे नही बल्कि दिन दिनभर मोबाइल में मुब्तिला रहता है.इस हकीकत से इन्कार किसीको हो ही नही सकता.

मोबाइल फोन अब दूरदराज जे अपनो से या कारोबार की गरज तक सीमित नही है.मोबाइल ने दुनिया छोटे से स्क्रीन में  सीमित या कैद किया.साथ आश्रफुल या श्रेष्ठ कहे जाने वाले इंसानी बिरादरी को वश कहे या ताबे बचपन से करने लगा.कई माँ की शिकायत कहे,या मिजाजखोरी कहे कहती है,बच्चा हाथ मे मोबाइल होतो खाना खाता है.हाथ से मोबाइल ले तो चिल्लाचिल्ला कर रोता है.कई बच्चे को गुमानी दुनिया का कार्टुन मोबाइल पर लगा कर दे तो खामोश. बच्चो को मोबाइल ऐडिक्ट कराने में माँ का बड़ा किरदार नजर आ रहा है.एडिक्ट बच्चा अब कार्टून देखते देखते कॉर्टून का किरदार बन चुके है.तरबियत का सबक,संस्कार के पाठ पढ़ानेवाले के घर भी गुमानी मायाजाल से बचे नही.

जिसकी खास वजह है,बढते शहरीकरण के वजह से घटते मैदान और मोबाइल के गुमानी गेम जैसे कई सॉफ्टवेयर का मायावी कमाल.

अब हम को हम में जब टटोलने से पता चलता है.हमने अल्लाउद्दीन की चिरागसा एंड्रॉयड मोबाइल को समझ लिया और उसे खरीदने की चाह ने खुदको कर्जदार बना दिया.

हमने मोबाइल से सोशल मीडिया जे जरिये पाँच हजार फ्रेंड्स तो बनाए अक्सर को हम जानते तक नही.वक्त अपनो को नही दे पा रहे.जिसे जानते ही नही उन्हींसे चाट कर रहे है.

पिछले कई दिनोसे एक ही बात की चर्चा है.नवजवान बच्चे मोबाइल में फंसे हुए है.बस चर्चा ही चर्चा है.

हमारे मोहल्ले के हाल यही था.कुछ बच्चे  मिलकर मेरे पास आये.मोहल्ले जब शाम हम बच्चे एक जगह जमते है तो बहोत सारे मोहल्लेवाले ऐतराज करते है. मैंने हमारे मोहल्ले के पासके ओपन स्पेस में खेलने को कहा.बच्चे वहाँ जमाना और खेलना सुरु किया.बच्चे वॉलीबॉल खेलने लगे.कुछ वहाँ भी ऐतराज जताने लगे.बच्चे डंटे रहे.मोहल्लेवाले भी धीरे धीरे उनके साथ देने लगे.मैदान में वॉलीबॉल खेलने बाहर के मोहल्लेवाले भी जमने लगे.खेल में रंगत आने लगी.बहोत सारे बच्चे मोबाइल की वहमी दुनिया से दूर हो गए.अब वॉलीबॉल की चर्चा पूरे इलाके में होने लगी और धीरे धीरे एक से दूसरी जगह वॉलीबॉल के मैदान बनाकर खेलते हुए नवजवान दिखने लगे है.अब हमारे इलाकेमें 200 से ज्यादा बच्चे हर रोज खेलते  है.

आप जो फोटो देख रहे है, ये वो मैदान है.जिसके लिए नवजवान बच्चे काम करते हुए दिखाई दे रहे है.

फिक्र सब कर रहे है और कह रहे है,हमारे बच्चे मोबाइल में फंसे हुए है.इसलिए आनेवाले दिनोंमें हम सब को ये कोशिश करनी चाहिए.छोटे छोटे ही सही मैदान को अपने बच्चों को खेलने के लिए मैदान का इस्तेमाल करना चाहिए.खेल चाहे जो भी हो मैदान में खेलना जरूरी है.गर बात समझे ......


अफजल सय्यद, 

अहमदनगर.

Tuesday, August 4, 2020

शमशान मे चिता ,कब्रस्तान में दफ्न रोज बच्चे जवान बूढ़े कोरोना के डर से हो रहे है.


                                         न्यूज वैल्यू
शमशान मे चिता ,कब्रस्तान में दफ्न रोज बच्चे जवान बूढ़े कोरोना के डर से हो रहे है......

अब हम सब भारतीयों की जिम्मेदारी है,कदम से कदम मिलाकर एक साथ खड़े रहने की,क्यों कि सरकार की कोशिश अब कम पड़ रही है.ये भी हकीकत है .....
हालात तो अब देश मे ये है कि,अपने ही मोहल्ले, अपने  पड़ोसी,अपने दोस्त अहबाब,अपने रिश्तेदार,को अचानक मरते हुए देखना पड़ रहा है.जिसमे हर मारनेवाला कोरोना का है? पिछले छह महीनोसे सुबह शाम कोरोना सुन सुन कर,कोई कैसा भी मरा हो, कोरोना ही से मरा है यह गलतफहमी की चर्चा से कई नागरिकोमे कोरोना की दहशत का असर इस तरह छा गया है कि,इन दिनों बारिश के मौसम में बारिश और बादल की वजह से बदलते पानी से बहोत सारी एक दुसरेसे फैलने वाली (वाइरल ) बीमारियाँ भी अपना असरदार जोर हर साल की तरह दिखा रही है.
जिसमे पानीसे भिजने से सर्दी,खाँसी, बुखार होता है वैसे ही बारिश का पानी नदी नाले से बहते कुए,तालाब,डैमों में जमता है.जिसमे कई जीवजंतु होने से जल निर्जन्तुकरण विभाग भी सोंच में पड़ता है ,ज्यादा मात्रा में दवा का मिश्रण भी नागरिको के आरोग्य को नुकसान पहोचाती है,कम दवा का मिश्रण भी डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, फ्लू ये सब जानलेवा बीमारियाँ को निमंत्रण देता है.ये बीमारियां हर साल इनता असर छोडती है, बहोत बड़े पैमाने पर हमारी सरकारी आरोग्य यंत्रणा काम पर जुटी होती है.और बीमारियों को नियंत्रण में लाने में प्राइवेट अस्पतालों काम करते है. फिर भी बीमारिया हर साल आती ही रहती है,इस साल कोरोना के लंबे काल के असर से दुर्लक्षित सी हो रही है और मिलती जुलती असरात (सिम्टम्स) के कारण डॉक्टर का डायग्नोसीस उल्टा होने से बीमारको मौत और रिश्तेदारों को पैसे का भारी भुगतान करना पड़ता है.
बड़े अस्पताल मे  बहन के  के नजदीकी एक रिश्तेदार की अम्माको रूटीन बीपी चेकिंग के लिए अस्पताल लेजाया गया.बीपी जरा बढ़ा हुआ था,तो कोरोना चेकिंग को ले जाने लगे,सामने पीपी किट पहने हुए देख बीपी और बढने लगा बेटे ने जब माँ को अस्पताल ले आया तो माँ नार्मल थी.अस्पताल के उतार चढ़ाव में थोड़ा बीपी बढ़ाना लाजमी था.मगर कोरोना चेकिंग की बात सुनी तो हालात बीपी बढने से सास लेने में तकलीफ होने लगी थी.बेटे ने माँ की हालत को समझा और कोरोना टेस्ट बिना ही घर अपने जिम्मेदारी पर ले आया.अम्मा अस्पताल से घर वापसी पर नार्मल हो गयी.इस घटना से आजतक नार्मल ही है.मगर ऐसी बहोत सारे लोग ऐ सी घटनाओं के शिकार हो कर मर जाते है और इल्जाम कोरोना पर क्योकि कोरोना का कोई रिपोर्ट आपको दिखायी जाती ही नही.कोरोना हर डॉक्टर के दिलोदिमाग़ पर छाने के वजह से अव्वल टेस्ट सिर्फ कोरोना दांत का दर्द होतो कोरोना,कान का दर्द होतो कोरोना,पेट दुखे तो कोरोना टेस्ट. हम सब जानते है अब तक कोरोना का कोई इलाज नही हैं सिर्फ क्वारणटाइन ही एक मात्र इलाज इसी मानसिकता की वजह से टेस्ट रिपोर्ट पर कोरोना का निदान और अपूर्ण टेस्टिंग के सुविधा से देरी के वजह से इलाज में देरी और देरी कारण तबियत ज्यादा खराब होती है और प्रभावी इंजेक्शन की वज़ह से कुछ जाने गवाने पडी. हकीकत ये भी है के कोरोना के दिन रात की रट सब बाते छुप  गयी.
 मेरे मोहल्ले में जब दो दिन में पांच जाने गवाई है,जिसमे तहकिक से बात ये सामने आयी है कि,हार्ट ,शुगर,बीपी का मरीज  अपना सर्दी बुखार की वजह से कोरोना के फैले गलत फहमियों के कारण दवाखानों में नही जा रहे है.दवाखानों में जाने जे बाद खून पेशाब बीपी चेक कराने से पहले कोरोना टेस्ट चेक कराने के बाद रिपोर्ट के आने तक बीमारी हद पार कर रही है नतीजन मौत असर कर रही है.सर्दी की तरफ को नजरअंदाज करने से न्यूमोनिया और न्यूमोनिया से मौत का शिकार हुए है.ये सब बातें सामाजिक दर्द रखनेवाले डॉक्टरोंसे से चर्चा मालूम हुई है. 
सरकारी प्रतिबंद ने भी बहोत सारी जाने ली है.अपने ही बाप के मय्यत में शामिल न होने का गम से भी लोग मरे है.इनकम बंद होने के गम (टेंशन) भी बहोत मारे है.कोरोना के नाम पर सब दब गया है.इससे भी दुखद बात ये है के, मीडिया ने इतना भय फ़ैलाया के अपने ही अपनो के अंतिम संस्कार से भागे है ये भी हुआ है  कोरोना के नाम से फैलाये गए भय के कारण.क्योंकि इंसान सब से ज्यादा गर डरता है,वह मृत्यु से याने मरने से. दर ने रिश्तों से दूर कर दिया.उसी डर ने इंसानियत को इंसानों से दूर कर दिया.
सब से एक अपील है कि, कोई भी बीमारी की नजरअंदाज ना करे.अपना इलाज कराये,खासकर बीपी,शुगर,हार्ट की बीमारी,एसीडिटी का प्रभाव राखनेवाले अक्सर ध्यान देते ही नही.अपना रूटीन चेकअप कराते रहे.और डॉक्टरो से भी अपील है सामाजिक जागृति के लिए आपका आगे आये.साथ ही कोरोना की रिपोर्ट से पहले डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी जानलेवा बीमारी की भी जांच करवाएं ताके सही डायग्नोसीस होकर मरीज अच्छा होकर उसकी जान बचे.हर इल्जाम में कोरोना बे वजह बदनाम ना हो,कोरोना का इलाज नही है और बहोत सारे कोरोना के मरीज अच्छे होकर घर आये है.ये हकीकत है.तो अब जानेवाली जाने अचानक बढ़ रही है. वजह कोरोना हम सब के दिल मे डर पैदा कर गयी है.प्लीज् प्लीज प्लीज् अपने दिल से कोरोना का डर निकाले. छोटेसे छोटे दुखने को नजरअंदाज ना करे....
सामाजिक जागरूता के लिए हम सब हमिलकर काम करे.
सरकार सभी हालत को कड़क नियमों को शिथिल करे 

अफजल सय्यद
संपादक, न्यूज एडिटर, अहमदनगर

Monday, July 20, 2020

ऊर्दू,अरेबिक, पर्शियन, फ़्रेंच लैंग्वेजेज सीखने में रोजगार के बड़े मौके - प्रो. शाहिद खोत सर


ऊर्दू,अरेबिक, पर्शियन, फ़्रेंच लैंग्वेजेज सीखने में रोजगार के बड़े मौके - प्रो. शाहिद खोत सर


 प्राइम चर्चा में 10 th, और 12 th के बाद लैंग्वेजेज( भाषा)में  बेहतरीन करियर बनाया जा सकता है.इस विषय को लेकर प्रोफेसर शाहिद खोत सर ने मार्गदर्शन (रहनुमाई) किया.शाहिद खोत सर ने कहा के, अक्सर बच्चे समझ नही पाते के 10th और 12th बाद क्या किया जाये.और पैरेंट भी नही जानते के बच्चे के किए क्या मुनासिब है और क्या नही? जो कुछ थोड़ा बहोत जानते है, उनकी अक्सर ख्वाहिश होती है अपना बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बने.मगर ये सब बच्चो की सलाहियत पर निर्भर होता है.बहोत सारे बच्चे अपने दोस्तों की वजह से अपना कॉलेज चुनते और अपनी साइड भी तय करते है.यह सब इस वजह से होता है कि,कोई सही गाइडेंस करनेवाले नही होते है.लेकिन आज के टेक्नोलॉजी के दौर में झुम प्राइम चर्चा और बहोत सारी संघठन अलग अलग ऑनलाइन प्रोग्रामस ले रही है.जिसका फायदा अब सबने उठाने की जरूरत है.जिसका एक हिस्सा के आज मै उर्दू, अरबिक,पर्शियन, फ्रेंच दीगर लैंग्वेजेज की करियर बनाने में कितने कारगर है.ये बताने आया हुँ. 
शाहिद सर अपनी निजी जिंदगी की बात बताते हुए कहते है.मुझे कोई बतानेवाला नही था.मैंने पहले बी.कॉम किया.बाद एम कॉम,फिर उर्दू में एम.ए. किया और आखिर में मैंने अरेबिक किया और प्रोफेसर बन गया.लंबा सफर कोई बतलानेवाला  नही था.बचपन मे वालिद गुजर चुके थे.माँ और बड़ेभाई पढ़ाई पढ़ाई के बारे में कुछ नही जानते.सिर्फ पढ़ने की हिदायत करते थे.उनकी दुआ का असर है,जो देर बाद मंजिल मिल ही गयी दोस्त बिरादर भी कुछ भी नही जानते थे.इस बात को महसूस करते हुए आज आपको तजुर्बात और आज के वक्त में अरबिक में बहोत सारे रोजगार के मौके है.हमारे बच्चे इसको समझे और फायदा उठाये.
मदारिस के बच्चो को भी बहोत फायदा है .इसकी तफ़सीर में कहा,मदारिस के बच्चे बहोत सारा अरबी जानते है.मदरसों से पढाई के बाद इमामत की सोंचते है.वहाँ भी जगह खाली नही होती है.फिर गुरबत और बेरोजगारी का मुकाबला करना होता है.मदारिस के बच्चे मदारिस के पढ़ाई बाद आगे असरी तालीम से अरबिक वा पर्शियन डिग्री हासिल कर करते है तो बहोत सारे काम जिससे बड़ी आमदनी हासिल कर सकते है.जिस पर हमें खास तवज्जो देने की जरूरत है.अरबी बहोत बड़े पैमाने पर बोली जानी वाली जबान है.जिसका बहोत बाद मार्केट है. वैसे अरबी दिनी एतेबार से भी समझना बहोत जरूरी है.
प्रोफेसर शाहिद खोत सर ने हर वो बात बतलाई जिससे फायदा हासिल हो सके.साथ ही आनेवाले दिनों ऑनलाइन अरबी क्लास बात पर बात की के गर बहोत सारे लोग शामिल हो तो वो भी जरूर सुरु की जाएंगी.जो अरबिक डिग्री लेना चाहते है.तो हर तरह की मदत रहबरी करने की बात कही है.बहोत अहमबाते से लोगो को बात समझाने की कोशिश की है.
अहमदनगर झुम प्राइम चर्चा  के जानिब प्रोफेसर शाहिद खोत सर का शुक्रिया अदा किया गया.महाराष्ट्र के मुख़तलिफ़ इलाको से लोगो ने ऑनलाइन हिस्सा लिया.बहोत सारे स्टूडेंट्स को इस का फायदा जरूर होंगा. इंशाअल्लाह....
अफज़ल सय्यद
एडीटर,न्यूज वैल्यू, अहमदनगर.

Tuesday, May 12, 2020

रमजानुल मुबारक -१९ *कसे वागावे कसे जगावे*


रमजानुल मुबारक -१९
 *कसे वागावे कसे जगावे*
पवित्र रमजान महिन्याचे शेवटचे दहा अकरा दिवस आता बाकी आहेत. उद्या रमजान महिन्याचा दुसरा कालखंड पूर्ण होणार आहे. मगफिरत च्या या काळात प्रत्येकानेअल्लाहतआलाची माफी मागून आपल्या कृत्यांबद्दल आपल्या संवेदना व्यक्त केल्या आहेत.करीत आहेत.ज्यावेळी अल्लाहने या पृथ्वीतलावर मानव जन्माला घातला. त्यावेळी पैगंबर हजरत आदम आणि हजरत हव्वा ही जोडी निर्माण केली.पुढे त्यांच्यापासून अपत्य निर्मिती होऊन आजच्या जगातील सर्व माणसे अस्तित्वात आली. (या अनुषंगाने आजची सर्व माणसं ही एकमेकांची नातेवाईक आहेत).वेळोवेळी या माणसांनी जेव्हा जेव्हा सत्याचा मार्ग सोडून इतर मार्ग धरला, तेव्हा त्यांना परत योग्य मार्गावर आणण्यासाठी त्या त्या काळामध्ये अनेक पैगंबर निर्माण केले गेले.त्यांनी आपल्या समकालीन लोकांना अल्लाहला अभिप्रेत असलेला मार्ग सांगितला. ज्यावेळी लोकांनी फारच मनमानी केली त्यावेळी त्यांना त्यांच्या कर्माची शिक्षा पण मिळाली. अशाप्रकारे जवळपास सुमारे एक लक्ष चोवीस हजार पैगंबर या पृथ्वीतलावर होऊन गेले. शेवटी अल्लाहतआला ने कुरआन मार्फत हे जाहीर करून टाकले कि हजरत मोहम्मद हे आता शेवटचे प्रेषित असून यानंतर कोणीही पैगंबर येणार नाही.मानवाने जर आपल्या चुका सुधारल्या नाही तर या सृष्टीचा शेवट होईल. अनेक धर्मांच्या शिकवणुकीतून ही बाब सर्वमान्य आहे कि या सृष्टीचा शेवट आता जवळ आलेला आहे. कारण माणसे आता सर्व प्रकारची नीतिमत्ता सोडून वागू लागली आहेत. स्वैराचार वाढला आहे. कोणत्या धर्माने वाईट कृत्यांचे समर्थन केलेले नाही. तरी सुद्धा आज सर्वत्र दुष्कृत्ये वाढीस लागली आहेत. जो तो आपल्या मर्जीने वागत आहे. मुस्लिम असेल तर कुरआनमध्ये सांगितलेल्या गोष्टी विरुद्ध ते वागत आहेत. इतर धर्मीय असतील ते सुद्धा धर्माच्या विरुद्ध वर्तन करीत आहेत. त्यामुळे अल्लाह आणि ईश्वर यांनी सांगितल्याप्रमाणे कयामत जवळ आलेली आहे. प्रत्येक जण हा विचार करतोय कि मी कसा जरी वागलो तर काय होणार आहे. परंतु या विकृत विचारसरणीतूनच गैरप्रकार वाढले आहेत. जीवनाच्या प्रत्येक क्षेत्रामध्ये चांगले कमी आणि वाईट करणारे जास्त झाले आहेत. त्याचा परिणाम सर्वांना भोगावा लागत आहे. एकीकडे धार्मिक कार्याचा महापूर येतो. प्रवचने होतात, तब्लिगी मेळावे होतात, हरिनाम सप्ताह होतात, दानधर्म होतात, नेकीचे कार्य केले जातात आणि दुसरीकडे अल्लाह किंवा ईश्वराने जे करायला सांगितले नाही ते करणारे सुद्धा मोठ्या प्रमाणात त्यांचं कार्य करतात. धर्माने दारू निषिद्ध केली तरी दारू पिणारे आणि विकणारे वाढले.अश्लीलता वाढली. व्यभिचार, दुराचार वाढले. नीतिमत्ता बदलली. व्याजाचे धंदे वाढले. फसवणूक करणारे वाढले. कर्जबुडवे सुद्धा वाढले. खोटेपणाने सत्ता उपभोगणारे वाढले. हे चित्र जगात सर्वत्र पाहायला मिळत आहे.हे सर्व अति झाल्यामुळे या जगाचा ऱ्हास जवळ आला आहे याबद्दल कोणालाही शंका नाही. म्हणून येणाऱ्या युगामध्ये जे सत्मार्गाने जीवन जगतील,ते अल्लाहची मर्जी संपादन करतील आणि कयामतच्या दिवशी ते स्वर्गाचे हक्कदार होतील. इतरांचे काय होईल हे सांगण्याची आवश्यकता नाही. देवाने ही जीवन दिले. त्यात आपण कसे वागायचे हे ज्याने  त्याने ठरवले पाहिजे.अल्लाहतआला सर्वांना चांगले वागण्याची सुबुद्धी देवो. आमीन .
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

Sunday, May 10, 2020

रमजानुल मुबारक -१७ *आपल्या संरक्षणार्थ जकात* पवित्र रमजान महिन्यांमध्ये प्रत्येक



रमजानुल मुबारक -१७
*आपल्या संरक्षणार्थ जकात*
पवित्र रमजान महिन्यांमध्ये प्रत्येक जण आपल्या वार्षिक व्यवहाराचा हिशोब करून जर आपण जकात देण्यास पात्र असू तर ती आदा करीत असतो. जकात देण्याचे सुद्धा काही निकष आहेत. ज्याला आवश्यकता आहे त्यालाच ती दिली पाहिजे.ज्यांची आर्थिक परिस्थिती चांगली आहे त्यांना जकात देता येत नाही.जकातीचा मुख्य उद्देश हा व्यक्तीच्या दैनिक आवश्यक गरजा पूर्ण करणे,दारिद्र्य निर्मूलन करणे हा आहे. त्यासाठी समाजातील गोरगरिबांना शोधून त्यांची मदत केली पाहिजे. जकात देताना घेणारी व्यक्ती कोणत्याही प्रकारे अपमानित होणार नाही, तिची समाजामध्ये फार चर्चा होणार नाही,घेणाऱ्याला कमीपणा वाटणार नाही अशा पद्धतीने द्यावयाची असते. एका हाताने देतांना दुसऱ्या हाताला सुद्धा खबर होणार नाही ही पद्धत त्यासाठी अंगीकारली पाहिजे.

अनेक प्रसंगांमुळे माणसे अडचणीत येतात. व्यवहारात झालेले मोठे नुकसान, मोठी चोरी, अचानक आलेल्या नैसर्गिक आपत्तीमुळे झालेले नुकसान अशा विविध कारणांमुळे चांगली चांगली माणसं कंगाल होऊन जातात. अशा लोकांना मदतीची खूप गरज असते. काही घटक असे असतात कि त्यांचं कोणी नसतं. त्यांना मदतीची आवश्यकता असते.काही कुटुंब अशी आहेत कि त्यांचं पालनपोषण करणारा कोणी नाही. अशांना मदतीची आवश्यकता असते. अनाथ, विधवा, आजारी, निराधार लोकांना सुद्धा मदत करण्याची आवश्यकता असते. समाजातील अशा सर्व प्रकारच्या गरजू घटकांना जकातीच्या रकमेतून मदत केली जाते.हे एक प्रकारचे गुप्तदान आहे. याचा फार गवगवा किंवा देखावा करू नये. अल्लाहलआलाची मर्जी संपादन करण्यासाठी त्याच्या आदेशानुसार आपण हे सत्कार्य करीत आहोत. याचा मोबदला आपल्याला तोच देणार आहे ही श्रद्धा ठेवून जकात दिली जाते. इथे वशिलेबाजी अजिबात चालत नाही.जकात आदा करण्यासाठी केला जाणारा हिशोब स्वतःच्या सदसद्विवेकबुद्धीला स्मरुन करावयाचा असतो.

त्यासाठी आपले सर्व व्यवहार लिहून ठेवा असे हजरत पैगंबरांनी सुद्धा सांगितले आहे. तोंडी व्यवहारांमध्ये गफलत होण्याची शक्यता असते. म्हणून कोणताही व्यवहार, कुणाशी जरी केला जात असला तरी त्याची नोंद करून ठेवली पाहिजे. कारण विस्मरणामुळे आपण विसरून जातो आणि मग त्यातून नवे प्रश्न निर्माण होतात. त्यासाठी आर्थिक असो किंवा इतर प्रकारचे व्यवहार लिहून ठेवणे आवश्यक आहे.
जकात वर्षभरात कधीही आदा केली तरी चालते. मात्र रमजान महिन्यांमध्ये प्रत्येक कामाला सत्तर पट पुण्य मिळत असल्यामुळे ती रमजानमध्ये आदा करण्याची रीत जगभर आहे. यावर्षी कोरोनामुळे गेले दोन महिने आपल्याकडे सर्व व्यवहार ठप्प आहेत. त्यामुळे अनेक माणसं आणि त्यांची घरे वरून चांगली दिसत असली तरी आतली परिस्थिती फक्त त्यांनाच माहिती आहे. अशा सर्व घटकांना समाजातून मोठी मदत दिली जात आहे. यावर्षी रमजान महिन्याची वाट न पाहता सर्व घटकांनी मदतीचा हात गरजूंना दिला. त्याचा मोबदला अल्लाहतआला प्रत्येकाला चांगला देईल याबद्दल कोणीही शंका बाळगू नये . (क्रमशः)
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

Saturday, May 9, 2020

रमजानुल मुबारक - १५ *कयामत आनेवाली है...*



रमजानुल मुबारक - १५
*कयामत आनेवाली है...*

पवित्र रमजान महिन्याचा अर्धा कालावधी आज पूर्ण होत आहे . पंधरा दिवसांपूर्वी जेव्हा महिना सुरू झाला तेव्हा कोरोनाचे सावट, बंद असलेल्या मशिदी, उन्हाची वाढलेले तीव्रता या सर्व पार्श्वभूमीवर महिना कसा जाईल ही चिंता प्रत्येकाला वाटत होती .आता अर्धा काळ निघून गेल्यानंतर दररोजची सवय झाली आहे . आता वर्षभर जरी रमजान महिना राहिला तरी काही होणार नाही एवढे रमजानचे वातावरण अंगवळणी पडले आहे . तहान भूक विसरून फक्त अल्लाहची इबादत हे एकमेव ध्येय समोर ठेवून घराघरातून रमजान महिन्याचे पालन केले जात आहे . लहान मुलापासून वृद्धावस्थेतील माणसांपर्यंत सर्वजण मनोभावे अल्लाहची प्रार्थना करीत आहेत . कुरआन शरीफचे वाचन करीत आहेत . नमाज पठण करीत आहेत . दानधर्म करीत आहेत .सहेरी आणि इफ्तारच्या उपक्रमांनी प्रत्येकाची दिनचर्या बदलून गेली आहे .जगाबरोबर देशात आणि राज्यात वाढत जाणारा कोरोनाचा प्रादुर्भाव काळजाचे ठोके चुकवत आहे . अनेक चांगली माणसे , आप्त,स्वकीय कोरोनाचा बळी ठरले आहेत .एका छोट्याशा  विषाणूने संपूर्ण जगास वेठीस धरले आहे . की सर्व त्या विधात्याची किमया आहे . मोठमोठ्या सत्ता, सामर्थ्य आज हतबल ठरले आहेत. सृष्टीचा निर्माता, ईश्वर, अल्लाह, परमेश्वर हाच या संकटातून वाचवू शकतो, ही धारणा दृढ झाली आहे. डॉक्टरांच्या रूपामध्ये तो आपल्या भक्तांना वाचवीत आहे . हजारो लोक कोरोनाच्या विळख्यात सापडले असले तरी तेवढेच या रोगातून बरे सुद्धा होत आहेत .

कोरोना का आला ? कुरआन शरीफ मध्ये म्हटले आहे, ज्या ज्या वेळी जगात स्वैराचार वाढत असतो. त्यावेळी आम्ही आपली झलक दाखवून आपल्या सामर्थ्याचं दर्शन घडवीत असतो. आज आपण पाहतोय गेल्या काही वर्षांमध्ये माणसाच्या मनमानीने जगभरात थैमान घातले आहे. कोणत्याही प्रकारची लाज,लज्जा, मर्यादा, आदर न बाळगता प्रत्येकाच्या मनाला वाटेल तसा तो वागत आहे. साधन,शुचिता, सामाजिक संकेत बाजूला ठेवून माणसे स्वैराचारी बनली आहेत. स्वार्थीपणामुळे ज्याला जे योग्य वाटतं तसं तो वागतोय. निसर्गाचा असमतोल निर्माण झाला आहे. सृष्टीचे प्रदूषण वाढले आहे. या सर्वांना ठीक करण्यासाठी कोरोना आला आहे.पण तो लवकरच जाणार आहे.आज रमजान ईद सर्वत्र साधेपणाने साजरे करण्यासाठी प्रत्येकाची मनोभूमिका तयार झाली आहे. ही पहिली ईद आहे कि या ईदला नवीन कपडे घेण्याची कुणाचीच मानसिकता राहिलेली नाही .पंचवीस मे पर्यंत दुकाने उघडू नये अशी मागणी आता मुस्लिम समाजातून होत आहे . हे परिवर्तन फार मोलाचे आहे . किमान सहा महिने तरी या परिस्थितीतून बाहेर यायला लागणार आहेत .त्यामुळे ईद जरी साधेपणाने झाली तरी येणारी दिपावली सर्व देशवासीयांची जोरात होईल अशी अपेक्षा करू या .आज निर्माण झालेली परिस्थिती म्हणजे अल्लाह तआला ने कुरआन शरीफ मध्ये नमूद केल्याप्रमाणे कयामत जवळ आली आहे . याची लक्षणे आहेत . तेव्हा माणसा, आता तरी तू सुधर बाबा .एवढेच आपण म्हणू शकतो. एका शायरने म्हटले आहे
मानते है वबा के दिन है, मगर ये भी खुदा के दिन है,दिलो से मायूसिया निकालो ,जरा सा आगे शिफा के दिन है .
 इन्शा अल्लाह ... (क्रमशः)
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

Thursday, May 7, 2020

रमजानुल मुबारक - १३ *जीवनाचा सर्वनाश - दारू*




रमजानुल मुबारक - १३
*जीवनाचा सर्वनाश - दारू*

पवित्र रमजान महिन्यांमध्ये कुरआन शरीफ चे वाचन ( तिलावत) सर्वत्र मोठ्या प्रमाणात केले जाते . घराघरातून मुले, मुली, महिला, पुरुष सर्वजण कुरआन पठाण करीत असतात . महिनाभरामध्ये काहीजण दहा-दहा वेळा सुद्धा कुरआन शरीफ ची तिलावत करतात . तरावीह च्या नमाज मध्ये देखील कुरआन पठण केले जाते . पूर्ण महिनाभरात किमान एकदा तरी कुरआन पठण करावे . काही ठिकाणी तरावीहमध्ये सहा दिवस, दहा दिवस, वीस दिवसांमध्येच पूर्ण कुरआन पठण केले जाते . बहुतेक मशिदीमधून दररोज तरावीहची नमाज संपन्न झाल्यानंतर जेवढ्या भागाचे पठण करण्यात आले आहे, त्याचा भावार्थ आणि विश्लेषण स्थानिक बोलीभाषेत केले जाते. त्यामुळे लोकांना मूळ अरबी भाषेतील कुरआनमध्ये अल्लाहतला ने काय संदेश दिला आहे हे समजते . केवळ कुरआन पठण न करता त्यामध्ये अभिप्रेत असलेला अर्थ समजून घेणे आवश्यक आहे .
काल-परवा केंद्र आणि राज्य सरकारने दारूची दुकाने सुरू करण्यासाठी परवानगी दिली .त्यानंतर दारू खरेदीसाठी लोकांच्या लागलेल्या रांगा देशभरात सर्वत्र पाहायला मिळाल्या. केरळमध्ये तर कळसच झाला. दारूच्या दुकानासमोरील रांगा नियंत्रित करण्यासाठी तेथे सरकारने शिक्षकांच्या नियुक्त्या  केल्या . यापेक्षा मोठे दुर्दैव नाही .
 इस्लामपूर्व काळात सुद्धा दारू पिली जात होती . सन हिजरी दोन मध्ये अल्लाहतआला ने कुरआन मार्फत संदेश देऊन इस्लाम धर्म मानणाऱ्यासाठी दारू हराम करार दिली . दारूचे सेवन वर्ज्य केले गेले .जे दारू सेवन करणारे आहेत ते मोठे गुन्हेगार ठरवले गेले .

लॉक डाऊन मुळे गेल्या दीड महिन्यापासून सर्व प्रकारची दुकाने बंद असल्यामुळे दारूची दुकाने देखील बंद होती. त्यामुळे घरातील बायका मात्र खूप आनंदात होत्या.कारण त्यांचा घर मालक दररोज शुद्धीत होता. घरातील मुले ,मुली खूप आनंदी होते, कारण त्यांचे वडील, बाबा दररोज त्यांच्याबरोबर घरामध्ये संवाद साधत होते. परंतु सरकारचे डोकं फिरलं. दारूमुळे खूप महसूल मिळेल आणि कोरोना मुळे ढासळत चाललेली अर्थव्यवस्था मूळ पदावर येईल असा जावई शोध कुणीतरी लावला आणि ही दुकाने सुरू केली गेली. एक काळ असा होता कि दारूच्या दुकानांमध्ये दारू घ्यायला माणसे घाबरत होती. लपून छपून दारू घेत होती. आपल्याला कोणी पाहिलं तर आपली इभ्रत जाईल ही भीती मनामध्ये होती. पण आता ही सर्व भीती वेशीवर टांगून लोकांनी दारूच्या दुकानापुढे दोन किलोमीटरच्या रांगा लावल्या. हे पाहून खरोखर आपण आता कलियुगाच वावरत आहोत याची खात्री पटली.
 इस्लाम धर्माने सुरुवातीपासूनच दारूचा तिरस्कार केला आहे. ज्या घरांमध्ये दारू सेवन करणारी माणसे आहेत त्या घराचे घरपण नष्ट झालेले दिसून येते.एका माणसाच्या चुकीच्या सवयी चे परिणाम संपूर्ण कुटुंबाला भोगावे लागतात. पिढी बरबाद होते. माणूस खूप चांगला ,परंतु या एका वाईट सवयी मुळे त्याची समाजातील प्रतिष्ठा कमी होते. याची जाणीव संबंधितांना असून सुद्धा दारूच्या आहारी गेल्याने नाहक बदनामी पदरी येते. अनेक कुटुंब या व्यसनापायी उध्वस्त झालेली दिसून येतात. दिवसभर काबाडकष्ट करून आणलेला पैसा दारू मध्ये घातला जातो. पुन्हा सकाळी उधारी साठी हात पसरले जातात. हे चित्र अतिशय विदारक आहे.  म्हणून प्रत्येकाने या व्यसनापासून दूर राहणे हे त्याच्या स्वतःच्या हिताचे तर आहेच,परंतु आपल्या कुटुंबाच्या सुद्धा हिताचे आहे. दारू एक असे व्यसन आहे कि त्याच्यामुळे इतर अनेक मोठे गुन्हे माणसाकडून घडत असतात. दुर्दैवाने सरकारचं पाठबळ असल्याने दारू विक्रीचा व्यवसाय वाढला. लॉक डाऊन मध्ये सुद्धा मागच्या दाराने विक्री चालू होती, पण आता राजरोसपणे ही दुकाने सुरू करून सरकारनेच कुटुंब व्यवस्था उध्वस्त करण्याचे ठरविले आहे की काय ? सरकारमध्ये असा एकही जबाबदार व्यक्ती नाही कि जो दारूच्या उत्पन्नापेक्षा होणारे कौटुंबिक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक नुकसान राज्यकर्त्यांना समजावून सांगेल. जे लोक रांगा लावून हजार रुपये दारू साठी खर्च करीत आहेत त्यांना गरीब कसे म्हणायचे ? शासनाने दारूच्या दुकानातील बिले ऑनलाइन करून अशा खरेदीदारांना कोणत्याही प्रकारच्या सवलती देऊ नये असे वाटते . अल्लाहतआला या व्यसनापासून सर्वांचे रक्षण करो .आमीन . ( क्रमशः )
*सलीमखान पठाण*

  • *9226408082*

Wednesday, May 6, 2020

"आणि माणसांचा जथ्था निघाला... पायी, अनवाणी, रक्ताळलेली, वेदनांचा डोह उन्हाखाली जिरवून..!"




#प्रगतीपथावरील_युवा #लेख_क्रमांक_१२

     "आणि माणसांचा जथ्था निघाला... पायी, अनवाणी, रक्ताळलेली, वेदनांचा डोह उन्हाखाली जिरवून..!"


पाणी, मेडिकल, झंडु  बाम, जेवण, बिस्कीट, फळ आणि रात्री भेटलेच तर झोपण्यासाठी अभय द्या...

माणसंच आहेत ती...!
      लोकांना हे आवाहन करीत स्वतःसुध्दा या लाँकडाऊनच्या कालावधीत घराकडे जाण्यासाठी साधने उपलब्ध नसल्याने जीवाच्या आकांताने पायी जाणा-या शेकडो लोकांना आतापर्यंंत  स्वखर्चानेे जेवणाची -राहण्याची व्यवस्था करणा-या,भटक्या-निराधार बांधवांना नवजीवनाची संजीवनी देणा-या, समाजकार्यासाठी स्वतःला वाहुन दिलेल्या,आभाळ उसवलेल्यांचा ख-या अर्थाने #आधार ठरलेले #आधार_सेवा_संकल्प_फाऊंडेशनचे_सर्वेसर्वा_जयवंत_मोटे यांच्या कार्यकर्तुत्वाचा आढावा घेणारा हा लेख.

#कोण_आहे_जयवंत_मोटे...
       आपल्यासारखाच सर्वसामान्य कुटुंबातला शेतक-याचा पोरगा, गाव वडाळा बहिरोबा ता. नेवासा. पुस्तकाची शाळा कमी शिकला पण स्वार्थी समाजात राहुन अनुभवाच्या शाळात पीएचडी केलेला. शेतीला जोडधंदा म्हणुन वडाळ्यात छोटेखानी हाँटेल अन् वाँशिंग सेंटर चालवुन उदरनिर्वाह करणारा पैलवान गडी. कुस्त्याची भारी हौस गड्याला पण ऐन उमेदीच्या काळात डोक्यावरील वडीलरुपी छत्र हरपल्याने आपल्या इच्छा -आकांक्षाचा त्याग करुन प्रपंचाचा गाडा हाकणारा.बालपण खुपच हलाखीच्या परिस्थिति मध्ये गेल्याने गरीबीची जाण ठेवणारा.ज्या यातना आपण भोगल्या त्या इतर कुणाच्या वाट्याला येऊ नये म्हणुन अहोरात्र राबणारा.
      लाँकडाऊनमुळे हातावर पोट असणारे स्थलांतरीत मजुर वाहनांअभावी तळपत्या उन्हात अंगाची काहिली होत असताना आपल्या चिल्या-पिल्यांसह अन्न-पाण्याविना जीवाच्या आकांताने  चालत असल्याचे चित्र सगळीकडे दिसत आहे .अशा कुटुंबियांची आस्थेने विचारपुस करुन त्यांच्या अन्न-पाण्याची व्यवस्था करुन त्यांना रात्री अपरात्री राहण्यासाठी निवारा ते देत आहेत. दीड महिन्यांपासुन हे काम अविरत सुरु आहे.गेल्या  आठवड्यात  #यवतमाळकडे पायी जात असलेल्या महिलेला वडाळ्यात प्रसुतिवेदना सुरु झाल्या. त्यांची परिस्थिति जयवंत भाऊने ओळखली,अनोळखी गाव अनोळखी माणसं अशा परिस्थितिमध्ये त्या महिलेचा पती रडवेल्या चेह-याने मदतीची याचना करत होता.  गावातीलच आशा स्वयंसेविकांच्या मदतीने त्या कुटुंबियांना #आधार देत सुखरुपपणे बाळंतपण त्या महिलेचे झाले. जात, धर्म, पंथ नाही तर फक्त माणुसकीचा धर्म निभावणारा आमचा #जयवंत_भाऊ.

"#दुसरों_कि_सेवा_करने_मे_अगर_आनंद_मिले_तो_वह_सेवा_है_वरना_बाकी_सब_दिखावा_है..

#बेघर_निराधारांच्या_सेवेसाठी_स्वतःला_वाहुन_घेणारा_अवलिया...
काही महिन्यांपुर्वी एका मनोरुग्ण गरोदर महिलेची सेवासुश्रुषा करुन आठ दहा दिवस तिचा सांभाळ करुन ,सोशल मीडियाच्या माध्यमातुन तिच्या घरच्यांचा शोध लावत तिला घरपोच केले. असे बरेच मनोरुग्ण आहेत जे आपल्या आसपास फिरत असतात, त्यांचे कुणाला काही घेणे देणे नसते. ते कुठे खात असतील वगैरे विचार तर लांबच.... असाच एक मनोरुग्ण असलेले त्यांना आढळला अपघात झाल्याने पाय फ्रँक्चर होता पाच -सहा दिवसांपासुन एकाच जागेवर बसुन... पाहताक्षणी किळस यावी असा अवतार मळके कपडे, वाढलेले केस -दाढी त्यात एकाच जागेवर बसुन असल्याने मल -मुत्र त्याच जागी अक्षरशः ओकारी यावी अशी परिस्थिति अशा मनोरुग्णाची किळस न करता त्यांनी त्याला अंघोळ घातली, न्हावी कटींग करायला धजावेना म्हणुन स्वतः त्याचे केस कापले,जखमेवर मलमपट्टी करुन त्याला बरे केले. आधिक माहिती काढली असता तो मनोरुग्ण व्यक्ती माजीसैनिक होता. त्यालाही घरी पोहोच केले.
       अशा अनेक बेघर मनोरुग्णांची सेवा-सुश्रुषा करुन ते काहीच तपास नाही लागला तर मोठ्या स्वयंसेवी संस्था, निराधारांसाठी जिथं राहण्याची -जेवणाची व्यवस्था आहे अशा संस्थांच्या ताब्यात ते या निराधार लोकांना देत आहेत.

#वडिलांच्या_पावन_स्मृतींना_अभिवादन_म्हणुन_हे_काम...
      जयवंत भाऊचे वडील आध्यात्मिक वृत्तीचे होते. दरवर्षी पंढरीची वारी ठरलेली, भजन -किर्तनात तल्लीन असलेल वारकरी संप्रदायाचा पाईक असलेलं व्यक्तिमत्व.हे बारा बर्षांचे असताना असेच त्यांचे वडील चारधाम यात्रेसाठी गेले होते. त्यांना पर्यटनाची आवड असल्याने ते सहसा लवकर घरी येत नसत,त्या वर्षी वडील घरी न येता त्यांच्या निधनाची बातमी घरी येऊन धडकली .मनमाड रेल्वे स्टेशनवर त्यांचा मृतदेह सापडला होता या भावंडावर दुःखाचा डोंगर कोसळला होता, आधारछत्र हरपले होते.
       अँन्बुलन्स दारात आली आवंढा गिळत माहिती घेण्याचा प्रयत्न कुटुंबियांनी केला असता त्या थंडीच्या दिवसात वडीलांच्या अंगावर फक्त कपडे होते. त्यांना दम्याचा त्रास होता. अंगावर उबदार पांघरुन नसल्याने ती थंडी सहन न झाल्याने हृदयविकाराच्या झटक्याने ते मरण पावले होते. इतक्या लोकांच्या गर्दीत कुणाला वडीलांची दया आली नाही किती ते निर्दयी लोक, वेळीच त्यांची परिस्थिति बघुन आजुबाजुला असणारांनी त्यांना दवाखाव्यात हलवले असते तर आज ते जीवंत असते पण माणुसकी सर्वांकडेच नसते ओ....
        वडिलांच्या निधनानंतर खुप अडी-अडचणींचा सामना करावा लागला, नाती -गोती, भावकी सारे काही कळले. काही वर्षांनी स्वतःची परिस्थिति जरा बरी झाल्यानंतर वडिलांच्या स्मृतीप्रित्यर्थ अशा बेघर -निराधार लोकांची सेवा करण्याचे व्रत त्यांनी घेतलेे आहे आणि ते निभावत आहेत.

#स्वतःसाठी_सारेच_जगतात_थोडे_समाजासाठी_जगा...
#छत्रपतींचा_सेवक_जयवंत_मोटे

       शिव-शाहु-फुले-आंबेडकरांच्या विचारसरणीला अनुसरुण वाटचाल करणा-या जयवंत भाऊंना हे काम करत असताना खुप अडचणी येतात. स्वतः काही करायचे नाही पण लोकांचे पाय ओढायचे अशा समाजविघातक प्रवृत्ती ही समोर येत असतात परंतु कोणत्याही परिस्थिति मध्ये हे काम थांबवायचे नाही हे त्यांनी मनाशी ठरवले आहे. शिवजयंतीला डिजे लावुन त्यापुढे नाचायचे नसते तर त्या रयतेच्या कल्याणासाठी लढलेल्या शिवबाची शिकवण अंगीकारायची. शिवबांचे विचार प्रत्यक्षात अमलात आणुन #छत्रपतींचा_सेवक म्हणुन काम करायचे हे त्यांनी ठरवलंय.....

#लोग_जुडते_गये_कारवाँ_बनता_गया...
     हे काम करत असताना समाजभान जपणा-या मित्रांचे सहकार्य लाभते. चकलांब्याचे माझे मित्र #कैलास_शिंदे दादा तुमच्यामुळे माणुसकी जपणा-या या अवलियाशी ओळख झाली तुमचे मनस्वी आभार
      #जयवंत_भाऊ तुमच्या कार्याला माझा सलाम, आता शुभेच्छा नाही तर सोबत मिळुन काम करु.....

#एस_मुन्ना_७०५७०५५५८५ 🙏

Tuesday, May 5, 2020

रमजानुल मुबारक - १२ *कुरआन मधील जीवन*




रमजानुल मुबारक - १२

*कुरआन मधील जीवन*

पवित्र रमजान महिन्यांमध्ये कुरआनशरीफ चे पृथ्वीतलावर अवतरण झालेले असल्याने या महिन्यांमध्ये जगभरामध्ये सर्वाधिक कुरआन पठण केले जाते . याला तिलावते कुरआन म्हणतात . तसं कुरआन शरीफ हा ग्रंथ दररोज वाचण्यासारखा आहे . मूळ अरबी भाषेत असलेल्या या ग्रंथाचं नुसतं वाचन न करता त्यातील अर्थ समजून घेऊन त्याप्रमाणे आपल्या जीवनामध्ये आचरण करण्याचा प्रयत्न प्रत्येकाने केला पाहिजे .
दैनंदिन जीवनामध्ये घडणाऱ्या अनेक घटना अनाकलनीय असतात. अचानकपणे काही प्रसंग निर्माण होतात. अशा प्रसंगी नेमका कोणता निर्णय घ्यावा हे आपल्याला सुचत नाही. त्यासाठी मार्गदर्शक म्हणून कुरआनशरीफ मधील अल्लाहतआलाचे आदेश आणि उपदेश आपल्याला मार्गदर्शक ठरत असतात. दररोजच्या जीवनामध्ये येणाऱ्या

समस्यांपैकीअनेक प्रश्नांची उकल कुरआन शरीफ मध्ये नमूद केलेली आहे . त्याचबरोबर हजरत पैगंबर आणि त्यांच्या नंतरचे सगळेच धार्मिक जाणकारांनी माणसाने कसे वागावे ?याबाबत काही अनमोल उपदेश केलेले आहेत.जसे- जर सदैव आनंदित रहावयाचे असेल तर वेळेवर नमाज अदा करावी. चेहरा तजेलदार राहावा असे वाटत असेल तर तहज़जुद( मध्यरात्रीनंतर आदा केली जाणारी नमाज )अदा करावी. जर मनाला शांतता हवी असेल तर कुरआनशरीफ ची तिलावत करावी. आरोग्य चांगले ठेवायचे असेल तर रोजे धरावेत. समस्यांची उकल करायची असेल तर अस्तगफार करावा. (असतगफार म्हणजे अल्लाहतआलाची मागितलेली माफी ) .जर बरकत पाहिजे असेल तर दरुद शरीफ पठण करावे . (दरूद शरीफ म्हणजे हजरत मोहम्मद पैगंबर सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम यांच्या नावाने केला जाणारा जप) समस्या आणि चिंता मुक्त व्हावयाचे असेल तर लाहौल वला कुव्वता इल्ला बिल्ला .या श्लोकाचे पठण करावे . दुःखांपासून चिंतामुक्त होण्यासाठी दुआ मागावी . नेहमी अल्लाहचे नामस्मरण करावे . प्रेषित हजरत पैगंबरांनी दाखवून दिलेल्या मार्गावर सदैव मार्गक्रमण करावे . आपल्यामुळे कोणाला ही कशा ही प्रकारचे दुःख पोहोचणार नाही याची काळजी घ्यावी . नेहमी खरेच बोलावे . खोटे बोलून आपले पुण्य वाया घालवू नये .गरजू महिला-पुरुष, मुले, मुली यांची नेहमी मदत करावी.विधवा आणि अनाथ यांना नेहमी मदत करावी .
आपण करीत असलेले प्रत्येक कृत्य हे अल्लाहला ज्ञात आहे . मग ते उजेडात करा किंवा अंधारात करा . त्यामुळे सतत अल्लाहची भीती मनात ठेवून जीवन जगावे . कारण या दुनियेत आपण करणार असलेल्या प्रत्येक कार्याचा हिशोब कयामतच्या दिवशी होणार असून आपण केलेल्या कार्या प्रमाणे जमाखर्च होऊन आपल्या जीवनाचं निकाल पत्रक (नाम ए आमाल) प्रत्येकाला प्राप्त होणार आहे . त्यामुळे मी हे केलं पण कुणाला माहीत नाही, मी ते केलं पण कोणी ही पाहिले नाही . या भ्रमात कोणीही राहू नये . (क्रमशः )
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

लाँकडाऊन_वास्तविकता_आणि_जगण्याचा_संघर्ष





लाँकडाऊन_वास्तविकता_आणि_जगण्याचा संघर्ष


       नमस्कार मित्रांनो,तारीख पे तारीख लाँकडाऊनची वाढत चालली आहे. टीव्ही पाहुन काही दिवसानी लोकं  हर्ट अँटँकने मरतील इतक्या त्या घाबरवणा-या बातम्या.कोरोना महामारीचं जागतिक संकट ओढवलंय, मान्य परंतु आज हातावर पोट भरणारा वर्ग, छोटी -मोठी कामे करुन उपजीविका भागवणारा वर्ग, शेतमजुर, अगदी भंगार गोळा करुन प्रपंच चालवणा-या लोकांच्या घरात आज काय परिस्थिति असेल? विचार करुनच अंगाचा थरकाप उडतो. कुठलीही प्रिंट मिडीया, न्युज चँनेल्स, दिग्गज लोकांच्या माध्यमातुन तुमच्यासमोर हे चित्र येणार नाही /आणले जाणार नाही परंतु या लेखाच्या माध्यमातुन तुमच्या -माझ्या समस्यांना/अडचणींना वाचा फोडण्याचा प्रयत्न आहे. जीवनावश्यक वस्तुंच्या नावाखाली होणा-या गर्दीने कोरोनाचा संसर्ग होत नाही काय? दारुवाल्यानी -मावा विकणारे काय उच्छाद मांडलाय सर्वांना माहित आहे ते सांगणार नाही. खरेतर लाँकडाऊन फक्त गोर-गरीबांचे रोजगार हिसकावुन पाळायचा असतो यावर आता शिक्कामोर्तबच झाले आहे. टनाने शेतक-याचा टरबुज /खरबुज, भाजीपाला असा माल विक्रीअभावी वाया गेला पण #अर्थव्यवस्थेचा_कणा म्हणुन दारु विकणाराला परवानगी द्यायची अन् शेतकरी उभा जाळायचा ही आमची धोरणं आहेत....
     #कष्टकरी_वर्ग_माझा_अन्नदाता_आहे_आपसुकच_त्यांच्याविषयी_जास्त_आस्था_आहे...

#अब_अपना_क्या_होगा_मुन्नाभाई_?
     प्रत्येकाचाच हा प्रश्न खुप अस्वस्थ करतो... भावांनो मीच सध्या खुप हँग झालोय.
   या महामारीमुळे आपण सर्वजण घरात बसुन आहोत. सध्या कुणाच्याच हाताला रोजगार नसल्याने आपल्यासारखे दहातले नऊजण हवालदिल आहेत, आला दिवस त्यांची चिंता वाढवणारा ठरत आहे.पाच-सहा वर्षांपुर्वी मी औरंगाबाद एमआयडीसी परिसरात काम करत होतो. तेव्हा औरंगाबादची बरीच कामगार मंडळी सोबत होती. माझी परिस्थिति तिकडे सर्वांना माहित असल्याने त्यांच्या डब्यात ते मला जेऊ घालायचे. त्यामुळे तिथल्या प्रत्येकाशी जिव्हाळ्याचे संबंध आहेत. असाच काही महिन्यांपुर्वी त्यातल्या एका मित्राने अडचणीत आहे, बचतगटाचा हफ्ता थकलाय तीन हजाराची मदत करु शकतो का म्हणुन विणवणी केली. त्याला बोललो सध्या मीच रिव्हर्स आलोय भावा, दोन हजार तुला पोहोच करतो. त्यानंतर काही महिन्यांनी लाँकडाऊन लागला. प्रत्येकाची ठराविक दिवसांनी फोन करुन हालहवाल विचारण्याची सवय मला आहे, असाच गेल्या आठवड्यात त्याला फोन केला, त्याला वाटलं मुन्नाभाई पैशासाठी फोन करतोय ,दबक्या सुरात बोलला "यार मुन्नाभाई बहोत परेशानी चलरी यार, महिनेसे घर में बैठा हु कुछ भी काम नही है, फिलहाल तो तेरे पैसे नै दे पाऊंगा... " वयाच्या विशीतच बापाचे छत्र हरपले, पश्चात दोन छोटे भाऊ, आई, औरंगाबाद मध्ये भाड्याचे घर, त्याला चार आकडी भाडे, भावांचे शिक्षण अशा परिस्थितिमध्ये स्वतःचे शिक्षण अर्धवट सोडुन तो माझ्याबरोबर कंपनीत कामाला यायचा. माझीही परिस्थिति तीच असल्याने आम्ही समदुःखी होतो. आज तो घरात बसुन आहे, कमवणारा एकटा आहे, घरभाडे मालकाने माफ केले तर बरे नाहीतर खुपच वाईट वेळ येईल ते चित्र माझ्या डोळ्यासमोर उभे राहिले, मी चिंताग्रस्त झालो.
          दुसरा एक मित्र गेवराईचा काही दिवस माझ्यासोबत रिक्षा चालवायचा,आता खाजगी बसवर चालक म्हणुन काम करतो. मला फोन करुन बोलला " मुन्नाभाई टेन्शन मत लो यार तुम यहा पे गेवराई आ जाओ, कुछ जुगाड करता तुम्हारे लिये... "मी त्याला नम्रपणे नकार दिला.  अशी समजुन घेणारी माणसं आहेत जीवनात म्हणुन काही वाटत नाही .घरी मी बसलेलो असताना माझा भाऊ सतत चिंतेत असतो त्याच्या चेह-यावरचे भाव मला समजतात पण मी त्याला बोलुन दाखवत नाही तो मला बोलत नाही.

#लाँकडाऊन_रमजान_आणि_मुसलमान...
       कधी नव्हे ते यावर्षी भर उन्हाळ्यात रमजानचा महिना आला आहे. त्यात कोरोनाची महामारी. अाज माझा पंचरवाला, चहावाला, रिक्षावाला, भाजीवाला, हमाली करणारा, मजुरी करणारा, मिळेल ते काम करणारा, कष्ट हेच भांडवल समजणारा प्रत्येक बांधव आज घरात बसुन आहे .मुस्लिम समाजात हातावर कमुन खाणारे 80% लोक आहेत. शेतीवाडीचा विषयच नाही.कुठल्याही कामाला आम्ही लाजत नाही, मेहनत करुन आपला चरितार्थ प्रत्येकजण भागवत असतो.
       आज कोरोनाच्या महामारीमुळे बेकारीची कु-हाड सर्वांवर कोसळली आहे, प्रत्येकजण हवालदिल झालाय. या पवित्र रमजान महिन्यात वर्षातला सर्वात मोठा सण रमजान ईद साजरी केली जाते.महिनाभर प्रत्येक घरात आनंदाचे धार्मिक वातावरण असते. या महिन्यात इतर महिन्यांच्या तुलनेत दुप्पट-तिप्पट खर्च असतो... शिरखुर्मा-गुलगुले बसवण्यासाठी लागणारा किराणा ,लहानग्यांपासुन आबालवृध्दांपर्यंत प्रत्येकाला नवीन कपडे, चपला आणि बरंच काही..... परंतु यावर्षी परिस्थिति खुपच बिकट आहे कर्ते-धर्ते घरात बसुन आहे, कोरोनाचे सावट या आनंदाच्या क्षणांवर आहे.
      समाजातील सुशिक्षित वर्गाकडुन आपला जकातचा पैसा गरजुंना द्या जेणेकरुन त्यांनाही सण साजरा करता येईल अशी मोहीम राबवली जातेय प्रत्यक्षात त्याची अंमलबजावहणी ही होईल. कुणीच या आनंदाच्या क्षणांपासुन वंचित राहायला नको हीच अल्लाहकडे प्रार्थना आहे....
      लिहीण्यासारखं खुप आहे पण पुन्हा कधीतरी......
एस मुन्ना , बोधेगाव ,शेवगाव

"मेरी महबूब नानीअम्मा महबूबबी"


         "मेरी महबूब नानीअम्मा महबूबबी"

हर इंसान की जिंदगीमें बचपन की यादे अपना एक मकाम रखती है. अपनी हयाते जिंदगीमें कई बार वो याद कर कभी माँ बाप,भाई बहन,दादा दादी,नाना नानी,मामा मामी,चाचा चाची,खाला,फूफी,आसपड़ोस, गल्ली मौहल्ले, बस्ती,गाव, स्कूल,मास्टर,दोस्त,बिरादर इतना ही नही,नदी नाले,खेत खलियान,पेड़ पौधे,खेल कूद,बगीचे खेलके मैदान,मारपीट, मौजमस्ती, सन त्योहार,उरुस जत्रा,मांगनी ब्याह,बहोत सारे लमहात हम उसे सीने में छिपाए आजके कंप्यूटराइजड भाषा मे कहे तो सेव कर रखते है.जब इनमें से कोईभी कईभी मिल जाये,नजर आ जाये,इंसान उसे ओपन कर देखकर अपने आप को कुछ देर के लिए यादोमे खो देता है.ऐसी हरकते उम्र भर कई बार करता है, तुम हो या मै!
आज मुझे मेरा बचपन मुझको स्कूल व्हेकेशन याने आम जबानमे गर्मियों के छुट्टियों लेगया.आज सबेरे कुछ आठ से दस साल बच्चे अपने घर के सामने बॅट बॉल खेल रहे थे.कोई बॉल फेंक रहा था,कोई बॅट से जोरदार मारने की कोशिश कर रहा,पीछे खड़ा तीन पत्थर के पीछे का विकेटी(विकेटकीपर) जोर से उछलकर ऑउट ऑउट चिल्लाता और लग रहा था के,अब बैटिंग का नंबर उसका है.झटसे आकर बैटमैन के हाथोंसे बॅट छीनना चाहा,बैटमैन भी जो नॉटऑउट कहता हुआ आगे भागने लगा.इन हरकतों को देख, मैं अपने बचपन को कर गया.
मुझे मेरी नानीअम्मा याद आयी. जिनसे मेरे कई दिवाली व्हेकेशन हो या गर्मियों की लंबी छुट्टिया लगते शाम तक मैं एस टी बस पकड़कर अपने नानियाल! बस में बैठते ही ऐसा लगता,अल्लाउद्दीन का जीन आकर बिना कीसी पूछे,आँख की पलके झपकते नानीअम्मा सामने हाजिर करदे.दादी तो हमारे पैदाससे पहले गुजर चुके थे.नानीअम्मा को आँख खोलते ही देखना सुरु किया था.क्योकि में नानीयाल में पैदा होनेवाला नाती पोतों में अव्वल बच्चा था.नानी दुलारा, दिनमें से छोटी छोटी हरकतों पर कई बलाइयाँ लेती,नमक उतार कर नजर निकालना हर शाम का नानीअम्मा का रूटीन से होता था.इतना बडा होने तक नानीअम्मा अपने पल्लुसे उड़ाकर सुलाती थी और बहोत सारे किस्से कहानियां सुनाती. दोपहर धूप की गर्मी में खेलने मना कर देती.कभी कभार न सुनने पर कहती,दूसरे की जिम्मेदारी है बाबा तू,तुझे कुछ हो गया तो तेरे बाप से क्या कहूंगी मैं ? नानीअम्मा के बात का बहोत गुस्सा आता,जब वो मुझको दूसरे की जिम्मेदारी कहती. मेरी रोती सूरत को देखकर मुझको रिझाने के लिए कहती.तू तो सिर्फ मेरा है,ये सिलसिला कई सालोटक चलता रहा.नानीअम्मा की सब जान मुझमे थी.

नानीअम्मा को दीनी किताबे,अखबार पढने का शौक था,जब मैं स्कूलमे जाने लगा था तो मुझको दिनी और स्कूली पढ़ाती थी.साथ ही अच्छी तरबियत जो कुछ मुझमे है.अल्लाह का अहसान है.उन्ही की देन है.आज जो भी मैं लिखा रहा हूँ, या सामाजिक काम करता हूँ,नानीअम्माका भी बडा किरदार है. उनसे जुडी यादे,बिस्मिल्लाह पढाया,मकतब भेजा, स्कूल भेजा, पहला रोजा रखवाया, उरुस मेलेमें अपने कमर पर उठाकर फिराया,खिलौने,पापड़ मिठाइयाँ दिलवायी बहोत सारी नानीअम्मा से जुड़ी मेरी अपनी यादो से दिल रुकने को इजाजत ही नही दे रहा. मगर कही तो रुकना ही है. मेरी नानीअम्मा की मेरी दुल्हन भी ले आयी.आखिर आँखे नम इसलिए है के, माहे रमजान में ९वे रोजेको कई साल पहले दुनियाससे रुखसत हुयी.
नानीअम्मा नाम महेबुबबी जैसा था वैसी उनकी मिजाज थी.शांत ,कभी किससे ताउम्र किसीसे कोई झगड़ा नही.
ऊँची आवाज में बात नही. सदा मुस्कान चहरे पर रहती.
अल्लाह मेरी नानी के सभी गुनाह को बक्श दे.पुलसिरात के रास्ते आसान कर दे और जन्नतुल फिरदौस में आला मकाम आता करे (आमीन)

अफजल सय्यद,
एडिटर, न्यूज व्हलुज



Monday, May 4, 2020

रमजानुल मुबारक - ११ *कुरआन ए पाकचा संदेश*






रमजानुल मुबारक - ११
*कुरआन ए पाकचा संदेश*


पवित्र रमजान महिन्याचा दुसरा भाग जो दहा दिवसांवर आधारित आहे,काल संध्याकाळी मगरिब पासून सुरू झाला आहे. याला मगफिरत म्हणजे माफीचा अशरा म्हणतात . (अशरा म्हणजे दहा दिवसांचा कालावधी ) या दहा दिवसांमध्ये अल्लाहतआला आपल्या लाखो भक्तांना माफी देत असतो. या दुनियेतील प्रत्येक जण हा कोणत्या ना कोणत्या प्रकारचे अपराध करीत असतो. अपराध किंवा गुन्हे फार मोठे दुष्कृत्ये केल्यानेच होतात असे नव्हे. विनाकारण एखाद्याचे मन दुखावणे हा सुद्धा अपराध आहे. जाणून-बुजून कुणाची तरी निंदानालस्ती करणे हा देखील अपराध आहे. कोणतेही कारण नसताना केवळ  दुसऱ्याला नाव ठेवणे हा सुद्धा अपराध आहे. एखाद्याकडे तिरस्काराने पाहणे हा सुद्धा अपराध आहे.स्वतःचे महत्त्व वाढविण्यासाठी एखाद्याला चुकीचे मार्गदर्शन करणे हा देखील अपराध आहे.असे छोटे-मोठे अनेक अपराध मानवी जीवनात सातत्याने घडत असतात. या सर्व अपराधांपासून सुटका मिळविण्यासाठीच धार्मिक सोपस्कार केले जातात . प्रत्येक धर्मामध्ये धार्मिक कर्मकांड करताना काहीतरी आधार घेतलेला दिसून येतो. धार्मिक कार्यक्रम केल्याने मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त होते अशी एक सर्वसाधारण धारणा आहे. प्रत्येक धर्माने धार्मिक ग्रंथ वाचन करण्याची शिकवण दिली आहे. कुरआन पठण म्हणजे तीलावत करणे हेसुद्धा रमजान महिन्यातील एकपवित्र कार्य किंवा इबादत (प्रार्थना ) समजली जाते. आपल्याकडे जसे भागवत कथा, नवनाथ पारायण, पोथी वाचन, ज्ञानेश्वरी पारायण केले जाते. त्याचप्रकारे रमजान महिन्यांमध्ये जगभरामध्ये कुरआनशरीफची तिलावत ही केली जाते . सर्व प्रकारच्या पोथ्या वाचनाचा हेतू परमार्थ चिंतन साधून अल्लाह, ईश्वर, भगवंताची आराधना करणे हाच असतो.

विश्‍वनिर्मात्याने ही सृष्टी मानवता (इन्सानियत) धर्मासाठी निर्माण केली . पण मानवाने या मानवतेची विभागणी वेगवेगळे धर्म, जाती, पंथ यामध्ये करून जगभरामध्ये सवते सुबे निर्माण केले . हिंदू-मुस्लीम,इसाई, ज्यू,शीख, जैन असे अनेक धर्म निर्माण झाले. प्रत्येकाने आपल्या पद्धती आपल्या विचारानुसार विकसित केल्या.परंतु या सर्वांमध्ये एक समान धागा म्हणजे कोणत्याही धर्माने इतर धर्मांचा तिरस्कार केला नाही. युरोपमध्ये अनेक ठिकाणी हजरात पैगंबरांनी सांगितलेले कोट्स होर्डिंग रूपाने आजही रस्त्यावर झळकताना दिसतात.ज्या देशांनी चांगले विचार आत्मसात केले ते फार पुढे गेले.पण ज्यांनी अशा विचारांचा स्वीकार केला नाही ते प्रगतीपासून वंचित राहिले . असे जगाचा इतिहास सांगतो . आपला देशही त्याला अपवाद नाही . भारताच्या राज्यघटनेमध्ये सर्वधर्मसमभावाचा पुरस्कार केला गेला आहे . मात्र राजकीय परिस्थितीमुळे या तत्वांना तिलांजली देण्यासाठी सुद्धा प्रयत्न होताना दिसत आहेत . आपल्या देशासाठी हे प्रगतीचे लक्षण नाही . कुरआन ची शिकवण ही सर्वांसाठी आहे .मानवाच्या विकासासाठी काय केले पाहिजे याचे विश्लेषण त्यामध्ये अल्लाहतआला ने केलेले आहे . गत साडेचौदाशे वर्षाच्या इतिहासामध्ये घडलेल्या अनेक घटनांचा संबंध कुरआनमधील शिकवणीशी संबंधित आहे .म्हणूनच जगभरामध्ये साडेआठ लाखांपेक्षा जास्त वेबसाईटवर कुरआन सर्च केला जातोय . पाश्चिमात्य राष्ट्रे त्यातील सत्य व योग्य गुणांचा स्वीकार करीत आहेत . मानवी कल्याणासाठी सांगितलेल्या कुरआनमधील आदेशांचे पालन होत आहे . आपला ही देश सुजलाम सुफलाम होण्यासाठी कुरआनचा पैगाम ( संदेश )समजून घेणे आवश्यक आहे . (क्रमशः)
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

स्वयंसेवी संस्था, लोकसहभाग, प्रशासन, आणि कंपनी सि.एस.आर च्या माध्यमातून राबविलेला राज्यातील पहिलाच उपक्रम.





कमिन्स इंडिया चे आर्थिक योगदान व नवजीवन संस्थेच्या पुढाकाराने

स्वयंसेवी संस्था, लोकसहभाग, प्रशासन, आणि कंपनी सि.एस.आर च्या माध्यमातून राबविलेला राज्यातील पहिलाच उपक्रम.


नवजीवन ग्रामोदय प्रतिष्ठान हि संस्था १९९४ पासून नाबार्ड बँकेच्या आर्थिक सहकार्याने महाराष्ट्रामधील दुष्काळग्रस्त गावामध्ये पाणलोट क्षेत्र विकासासारखा महत्वाकांक्षी प्रकल्प तसेच अनेक देणगीदार संस्था व शासनाच्या विविध विभागामार्फत प्रामुख्याने लोकसहभागातून, शिक्षण, आरोग्य, महिला बचत गटांमार्फत आर्थिक विकास  तसेच अनाथ, निराधार, निराश्रित, एक पालक व उसतोड कामगारांच्या मुलांसाठी बालकाश्रम चालवत आहे.
कोरोनाच्या पार्श्वभूमीवर लॉकडाउनमुळे उद्भवलेल्या गंभीर दुःखदायी परिस्थितीत संकटाला समाज सेवेची संधी मानून नवजीवन या संस्थेने पुढाकार घेऊन देवनाथ फाउंडेशन, मोहनराव गाडे सामाजिक प्रतिष्ठान तसेच स्थानिक दानशुरांच्या सहकार्याने पाथर्डी येथे दि.26.मार्च रोजी ‘चला करुया अन्नदान अभियानास’  सुरुवात केली.
पाथर्डी नंतर संस्थेने प्रहार संघटना, ‘वारी’ फौंडेशन, शब्दगंध साहित्यिक परिषद, मोहनराव गाडे सामाजिक प्रतिष्ठान, विश्वनिर्मल फौंडेशन, स्त्री शक्ती फौंडेशन, आधार संस्था  या संस्था-संघटनांना एकत्रित करून ‘अहमदनगर सोशल फेडरेशन’ या व्यासपिठाद्वारे कमिन्स इंडिया फौंडेशन च्या आर्थिक सहकार्याने दि.४ एप्रिल पासून नगर MIDC परिसरातील कंपन्या बंद पडल्याने बेरोजगार झालेले कामगार तसेच पोलिसांनी क्वरांटाइन करून ठेवलेले स्थलांतरित मजूर यांचेसाठी अन्नदान अभियान सुरु केले. या अभियानामध्ये शब्दगंध चे राजेंद्र उदागे यांनी सहभागी होऊन दररोज १५० ते २०० याप्रमाणे आजपर्यंत त्यांनी ३५६७ टिफिन दिले. तसेच प्रहार अकादमी व मधुबन ओर्गानिक चे संतोषभाऊ पवार यांनी दररोज १०० याप्रमाणे १८०० टिफिनचे मोठे योगदान दिले. तसेच सबरजिस्ट्रार संजय त्रिंबक साळवे यांनी ५०० टिफिन देऊन सहकार्य केले. याबरोबरच शहरातील ‘Helping Hands’ औद्योगिक सुरक्षा व आरोग्य विभागाचे उपसंचालक स्वप्नील देशमुख व त्यांची टीम यांनीही अभियानास मोठा हातभार लावला.
पाथर्डी आणि नगर नंतर कर्जत तालुक्यातील दुष्काळी माहिजळगाव येथे संस्थेने या अभियानास सुरुवात करून आज अखेर १९०० गरजू लोकांना जेवण दिले.
अभियानाचे प्रमुख मार्गदर्शक - कमिन्सचे विकास साळवे, आदित्य देसाई, अंजली मगर, संदीप क्षीरसागर, प्रशांत चितळे. औद्योगिक सुरक्षा व आरोग्य विभागाचे उपसंचालक स्वप्नील देशमुख, नवजीवनचे डॉ.श्रीकांत तोडकर, जयेश कांबळे, सौ. अस्मिता साळवे, वारी संस्थेचे सुधीर लंके, देवनाथ फौंडेशनचे डॉ.ज्ञानेश्वर दराडे
अथक परिश्रम – प्रा. दिगंबर गाडे, प्रा.सुनील मरकड, भाग्येश शिंदे, बाळासाहेब चव्हाण, जीतेंद्र आढाव, रवींद्र वायकर, शेखलाल पठाण, प्रथम सोनवणे, राजेंद्र मारकंडे, संपतराव रोहोकले, राजेंद्र भोसले, सुदाम लगड, रवींद्र पवार, संपतराव रोहोकले, सुनील गोसावी
नवजीवन वॉरीयर्सची कामगिरी –
१. प्रा.दिगंबर गाडे - शहारापासून अतीदुर्गम, ज्यांच्या पर्यंत कोणत्याही प्रकारची मदत अद्याप पोहोचलेली नाही अशा खेड्यांतील दुर्लक्षित घटकांपर्यंत जाऊन त्यांना अन्नदानाबरोबरच आपल्या जवळ लहान मुलांसाठी चॉकलेट, बिस्किट व खाऊ देत जमलेल्या लोकांना परिसर स्वछता, आरोग्य, शिक्षण, अंधश्रद्धा या विषयी मार्गदर्शन करत आहेत. आजपर्यंत पाथर्डी तालुक्यातील 25 गावांमधील वंचित कुटुंबांपर्यंत  ते पोहोचले आहेत.

२. डॉ.जयेश कांबळे – कर्जत तालुक्यातील माहिजळगाव येथील गरजवंतापर्यंत अन्नदान करण्याबरोबरच लॉकडाऊन मुळे मानसिक स्वास्थ्य बिघडलेल्या व्यसनाधीन व्यक्तींचे प्रबोधन करत आहेत.
३. डॉ.श्रीकांत तोडकर – मंत्रालयातील अधिकारी असल्याने आपले नेट्वर्किंग व कार्यकुशलतेचे कौशल्य वापरून सर्व स्वयंसेवकांना या कोरोना युद्धात लढण्यासाठी मानसिक आधार व आर्थिक पाठबळ देतात.
४. राजेंद्र उदागे -  शब्दगंध साहित्यिक परिषद, अहमदनगर केटरर्स, नवजीवन प्रतिष्ठान तसेच जिल्ह्यातील अनेक संस्थांचे पदाधिकारी असलेले राजूभाऊ उदागे  या उपक्रमाविषयी बोलताना म्हणाले कि, हा अन्नदान उपक्रम सध्याच्या गंभीर व अडचणीच्या काळात खरोखरच स्तुत्य आहे. या उपक्रमामुळे मला अनेक भुकेलेल्यापर्यंत पोहोचता आले याचे समाधान आहे. या पुढील काळात मी अहमदनगर सोशल फेडरेशन सोबत कार्य करत राहील.
५. संतोष पवार – मुळचे जामखेड येथील राहिवासी व  सामुदायिक विवाह सोहळ्यांचे आयोजन करणारे, जिल्ह्यात व राज्यभरात प्रहार संघटनेच्या माध्यमातून अन्याय अत्याचार्याच्या विरोधात खंबीरपणे लढा देणारे मा.संतोषभाऊ पवार या उपक्रमाविषयी म्हणाले कि, अहमदनगर सोशल फेडरेशन च्या माध्यमातून मला या अन्नदान उपक्रमात सहभागी होऊन गरिबांची सेवा करता आली.
पाथर्डी येथे 3792, नगर येथे ११,७३४, माहिजळगाव येथे १९०० असे एकूण १७,४२६ गरजवंतापर्यंत जेवन पोहोचले असल्याचे सांगून कोरोनाशी लढता लढता कोरोनाच्या विषाणूबरोबर जगायला शिकले पाहिजे असे नवजीवनचे राजेंद्र पवार यांनी सांगितले.

रमजानुल मुबारक - १० *रहमत आणि मगफिरत*





रमजानुल मुबारक - १०

*रहमत आणि मगफिरत* 


पवित्र रमजान महिन्याचा रहमत (कृपादृष्टी ) चा कालखंड आज रोजी पूर्ण होत आहे . रमजानचे पहिले दहा दिवस रहमत (कृपा) ,दुसरे दहा दिवस मगफिरत अर्थात (माफी) आणि तिसरे दहा दिवस जहन्नम पासून मुक्तीचा कालावधी म्हणून गणले जातात . कृपादृष्टीचा काळ आज पूर्णत्वास जात आहे .अल्लाहतआला आपल्या भक्तांवर सतत कृपा करीत असतो . त्यांच्या आवाक्या पेक्षा जास्त ओझे तो कधीच त्यांच्यावर टाकत नाही . तो खूप दयालू आहे . भक्तांनी केलेल्या अनेक चुका तो झाकून ठेवीत असतो . तो कधी कुणाची गुपितं उघड करीत नाही.जे लोक इतरांची गुपितं उघड करीत नाहीत अशा भक्तांना तो पसंत करतो .आपल्या दैनंदिन जीवनामध्ये जे लोक इतरांची गुपित (ऐब) झाकतात . कयामतच्या दिवशी त्यांची गुपितं सुद्धा झाकली जातील . ती अल्लाह शिवाय कोणालाच माहिती होणार नाहीत . हदीस शरीफ नुसार हजरत पैगंबरांनी म्हटले आहे कि तुम लोगो के ऐबो को छूपाओ,अल्लाहतआला तुम्हारे ऐबो को छुपायेगा .दैनंदिन जीवनामध्ये एकमेकाच्या अनेक गुप्त गोष्टी आपल्याला माहीत असतात. काहीवेळा त्या सांगितल्याने फायदा होतो तर अनेक वेळा नुकसान होते. आपल्या हातून कोणाचे नुकसान होणार नाही याची काळजी प्रत्येकाने घेतली पाहिजे.एखादी गोष्ट माहीत झाल्यास तिचा गावभर गवगवा करण्याची सवय असणाऱ्या प्रवृत्ती समाजात असतात.कुणाचे चांगले होणार असेल तर असा गवगवा करण्यास काहीच हरकत नाही. परंतु जर कोणाचे नुकसान होणार असेल तर अश्या वेळी अशा गोष्टीवर पडदा टाकला पाहिजे. असं समाजामध्ये सर्वसाधारणपणे बोलले जाते. समाजाचे आरोग्य निरोगी राहण्यासाठी अनेक गोष्टी आपल्या मनाविरुद्ध झाल्या तरी संयम पाळून सहन कराव्या लागतात.आपल्यामुळे कुणाचा प्रपंच, कुणाची प्रतिष्ठा, इभ्रत, धुळीस मिळणार नाही याची काळजी प्रत्येकाने घेणे आवश्यक आहे. हीच शिकवण इस्लाम धर्माने दिली आहे.

मानवाकडून कधी अनावधानाने तर कधी जाणीवपूर्वक काही गोष्टी केल्या जातात. यामध्ये काही प्रकरणे नाजूक असतात. अशावेळी या गोष्टी जगजाहीर झाल्या तर कुटुंब उद्ध्वस्त होण्याची शक्यता असते. त्यावेळी अत्यंत काळजीपूर्वक पावले उचलून कुणाचेही नुकसान होणार नाही याची दक्षता घेतली गेली पाहिजे .दररोजच्या जीवनामध्ये अनेक प्रसंगांना आपल्याला सामोरे जावे लागते. अशावेळी नेमका कोणता निर्णय घ्यावा हे उमजत नाही. या सर्व गोष्टींबाबतचे मार्गदर्शन कुरआन शरीफ मध्ये केलेले आहे . त्यासाठी कुरआन समजून-उमजून वाचण्याची व समजून घेण्याची आवश्यकता आहे .
रमजान महिन्याचा कृपा दृष्टीचा कालावधी आज संपन्न झाल्यानंतर उद्यापासून मगफिरत( माफी )चा दहा दिवसाचा कालावधी सुरू होणार आहे . याकाळात प्रत्येकाने अल्लाहची माफी मागावी . आपण केलेल्या  सर्व प्रकारच्या कृत्यांसाठी माफी आवश्यक आहे .माफी मागणे आणि माफ करणे यामध्ये सुद्धा अंतर आहे . बदला घेण्यापेक्षा माफ करणारा हा सर्वश्रेष्ठ मानला जातो .(क्रमश:)
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

Sunday, May 3, 2020

रमजानुल मुबारक -९ *कुरआन आणि रमजान*k



रमजानुल मुबारक -९ 

*कुरआन आणि रमजान*

पवित्र रमजान महिन्यातील महत्त्वाची घटना म्हणजे कुरआनशरीफ चे पृथ्वीतलावर झालेले अवतरण. अल्लाहतआला, जो समस्त ब्रह्मiड चा रब आहे.जो निसर्ग, पृथ्वी, वातावरण या सर्वांचा मालिक आहे. ज्याला रब्बुल आलमिन म्हटले जाते. तो सर्वांचा आहे. फक्त मुस्लिमांचा नाही. केवळ मुस्लिमांचा असता तर त्याला रब्बुल मुसलिमीन म्हटले गेले असते.परंतु कुरआनशरीफची जी  पहिलीच आयत आहे . ज्याची सुरुवात सुरए- फातेहा मध्ये होते .त्यात म्हटले आहे 'अल्हमदुलिल्लाही रब्बील आलमीन .म्हणजे तो ईश्वर, जो संपूर्ण सृष्टीचा (आलम ) रब आहे .
लोकांच्या मार्गदर्शनासाठी अल्लाहतआला ने कुरआन शरीफ हा ईश्वरी ग्रंथ आपला खास दूत फरिश्ता हजरत जीब्रईल मार्फत प्रेषित हजरत मोहम्मद पैगंबर यांच्यापर्यंत पोहोचवला . त्यांनी तो आपल्या अनुयायां मार्फत लोकांमध्ये आम (सार्वजनिक ) केला .अल्लाहने हा ग्रंथ फक्त मुस्लिमांसाठी नाही तर,या जगातील समस्त मानवजातीसाठी पाठविला आहे . म्हणून आज संपूर्ण जगभरामध्ये केवळ मुस्लिम नव्हे तर जगभरातील सर्व जाती आणि पंथाचे लोक कुरआनशरीफ समजून घेत आहेत . जगातील सर्व भाषांमध्ये त्याचे भाषांतर झालेले आहे . जगातील अनेक विद्यापीठांमध्ये कुरआन शरीफ वर खास संशोधन आजही सुरू आहे . मराठी भाषेत देखील कुरआन उपलब्ध आहे .माझ्या अनेक मराठी  मित्रांनी आत्तापर्यंत त्याचा लाभ घेतला आहे .ते कुरआन शरीफचे अध्ययन करतात आणि प्रश्नोत्तर रूपाने समजूनही घेतात.गेल्या वर्षी अहमदनगर मध्ये झालेल्या ग्रंथप्रदर्शनात सर्वाधिक विक्री मराठी भाषेतील कुरआन शरीफ या ग्रंथाची झाली हे विशेष.

हा ईश्वरी ग्रंथ रमजानच्या पवित्र महिन्यामध्ये पृथ्वीवर अवतरला. दरवर्षी रमजान मध्ये, जगामध्ये जसेजसे प्रसंग निर्माण होत, त्यानुसार अल्लाह कडून हजरत पैगंबरांना कुरआनच्या माध्यमातून मार्गदर्शन मिळत असे . प्रेषित हजरत पैगंबरांना वयाच्या चाळीसाव्या वर्षी नबुवत (प्रेषित्व )प्राप्त झाली . तद्नंतर लगेच कुरआनशरीफ चे अवतरण सुरू झाले . जवळपास तेवीस वर्षांच्या कालावधीमध्ये हा ग्रंथ हजरत पैगंबरांपर्यंत आला.त्यांनी तो लोकांपर्यंत पोहोचवला .प्रत्येक माणसाने आपले जीवन कशा प्रकारे व्यतीत करावे याचे सखोल मार्गदर्शन कुरआनशरीफ मध्ये अल्लाहतआलाने केले आहे.प्रत्येकाने काय करावे, काय करू नये, पुण्य कशामध्ये आहे, पाप कशामुळे होते,मोठ्यांशी कसे वागावे, छोटयांशी कसे वर्तन करावे,व्यवहारात पारदर्शकता कशी असावी अशा अनेक बाबी, ज्याआपल्या जीवनाशी संबंधित आहेत . त्याचे मार्गदर्शन कुरआनशरीफ मध्ये केलेले आहे. आज आपण कुरआनची शिकवण सोडून दिल्यामुळे संपूर्ण जगच संकटात सापडले आहे.यासाठीच कुरआनशरीफ समजून घेऊन त्याचा अंगीकार आपल्या दैनंदिन जीवनामध्ये करण्याची आवश्यकता आहे . (क्रमशः )
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

Saturday, May 2, 2020

परराज्यातील ५० प्रवासी त्यांच्या गावाकडे रवाना




परराज्यातील ५० प्रवासी त्यांच्या गावाकडे रवाना
*आपुलकीने सांभाळ केल्याबद्दल मानले प्रशासनाचे आभार

आज रात्री नगरहून राजस्थानसाठी प्रवासी बस रवाना करण्यात आली. लॉकडाउन काळात या बसेस मधील प्रवासी विनापरवाना जात असताना५० व्यक्तींना ताब्यात घेऊन निवारा गृहात दाखल करण्यात आले होते. शहरातील बडी साजन ओस्वाल मंगल कार्यालय या ठिकाणी त्यांची व्यवस्था करण्यात आली होती.
आज त्यांना त्यांच्या घरी जाण्यास मिळणार असल्याने त्यांनी आनंद व्यक्त केला. जिल्हा प्रशासनाने अतिशय आपुलकीने काळजी घेतल्याबद्दल यंत्रणेतील प्रत्येकाचे त्यांनी आभार मानले.  

दिनांक २७ मार्च रोजी अहमदनगर जिल्हा प्रशासनाच्या भरारी पथकाच्या माध्यमातून कडप्पा, आंध्रप्रदेश येथून राजस्थान कडे जाणाऱ्या या 50 जणांना नगर मध्ये प्रवेश करतेवेळी ताब्यात घेण्यात आले होते. येथे त्यांची राहण्या-खाण्याची व इतर वैद्यकीय सुविधांची सोय करण्यात आली होती. बडी साजन ओसवाल श्री संघ व सकल राजस्थानी युवा मंच यांनी यासाठी जिल्हा प्रशासनाला सहकार्य केले. या नागरिकांना  आज राजस्थानमधील जालोर, बाडमेर या जिल्ह्यांमध्ये शासकीय नियमाप्रमाणे रवाना करण्यात आले. यामध्ये ४६  पुरुष व ०२ महिला तसेच ०२ लहान मुले आदी ५० जण होते. त्यांच्यासमवेत असलेल्या आंध्रप्रदेश येथील वाहनचालकांना उद्या, दिनांक ०३ मे रोजी सोडण्यात येणार आहे. त्याबरोबरच राजस्थानमधील करोली जिल्ह्यातील सुमारे 15 नागरिकांना रवाना करण्याची प्रक्रिया 3 मे रोजी संपन्न होणार आहे.     **

प्रेरणा प्रतिष्ठानच्या वतीनेशहरातील रिक्षा चालकांसाठी किराण्याची मदत






प्रेरणा प्रतिष्ठानच्या वतीनेशहरातील रिक्षा चालकांसाठी किराण्याची मदत


लॉक डाऊन काळात रिक्षाचालकांना सोसावे लागत आहे मरण यातना  

अहमदनगर (प्रतिनिधी)- कोरोनाच्या पार्श्‍वभूमीवर पुकारण्यात आलेल्या लॉक डाऊनला दिड महिना उलटून जात असताना रिक्षांची चाके जागेवरच थांबलेली आहेत. दररोजची कमाई मिळवून कुटुंबाचा उदरनिर्वाह करणार्‍या शहरातील रिक्षा चालकांवर उपासमारीची वेळ आली असताना प्रेरणा प्रतिष्ठानने रिक्षा चालकांच्या थांबलेल्या संसाराला गती देण्याचा प्रयत्न केला आहे. नुकतेच प्रतिष्ठानच्या वतीने अहमदनगर जिल्हा ऑटो, रिक्षा व टॅक्सी चालक संघटनेच्या सदस्यांना किराणा साहित्याचे वाटप आमदार संग्राम जगताप यांच्या हस्ते करण्यात आले. यावेळी रिक्षा संघटनेचे अध्यक्ष अविनाश घुले, राष्ट्रवादीचे शहर जिल्हाध्यक्ष प्रा.माणिक विधाते, सल्लागार विलास कराळे, दत्ता वामन, अशोक औशिकर, लतीफ शेख, रावसाहेब काळे, रवींद्र वाबळे, अशोक कारळे, राहुल गोरे, राजेंद्र टिपरे, मुन्ना शेख आदिंसह रिक्षाचालक उपस्थित होते.
शहरात निम्म्याहून अधिक रिक्षा कर्जावर नवीन घेण्यात आल्या आहेत. लॉक डाऊनमुळे रिक्षांचा अत्यावश्यक सेवेत समावेश होत नसल्याने त्यांना बाहेर पडणे देखील मुश्कील झाले आहे. दररोज शहराच्या विविध भागात रिक्षा धावत असतात. मात्र कोरोनाच्या लॉक डाऊनचा काळ रिक्षाचालकांसाठी मरण यातना देणारा ठरत आहे. कर्जाचे हप्ते कसे फेडावे? हा गंभीर प्रश्‍न देखील त्यांना भेडसावत आहे. शिपवर (भाड्याने) दिवसभर रिक्षा चालवून कुटुंबाचा गाडा हाकणार्‍या चालकांच्या कुटुंबाची तर अत्यंत बिकट परस्थिती आहे. मोठ्या आर्थिक संकटात सापडलेल्या शहरातील रिक्षा चालकांना प्रेरणा प्रतिष्ठानच्या वतीने जीवनावश्यक किराणा साहित्याचे वाटप करुन आधार देण्यात आला आहे.

जिल्ह्याच्या सिमेवरील नाकेबंदी कडक



जिल्ह्याच्या सिमेवरील नाकेबंदी कडक
एका व्यक्तिचा अहवाल पॉज़िटिव

पाथर्डी तालुक्यातील मोहोज देवड़े येथील ४५ वर्षीय व्यक्तिचा कोरोना बाधित  पुण्याच्या लष्करी मेडिकल महाविद्यालय येथील अहवाल पॉजिटिव आला आहे. जिल्ह्यातील कोरोनो बाधित रुग्णाची संख्या ४४ झाली आहे.जिल्ह्याच्या सिमेवर नाकेबंदी कडक करण्याचे आदेश जिल्हाधिकारी राहुल द्विवेदी यांनी काढले आहे.अशी माहिती जिल्हा माहिती कार्यालय अहमदनगर यांनी दिली.

लॉकडाउन मुळे घरात पैश्या ची चनचन, त्यात दारुचे दुकान आणि पान टपरी सुरु करण्याचा सरकारचा निर्णय...



 लॉकडाउन मुळे घरात पैश्या ची चनचन, त्यात दारुचे  दुकान आणि पान टपरी सुरु करण्याचा सरकारचा  निर्णय...

दारुचे दुकान आणि पान टपरी सुरु करण्याचा निर्णय केंद्र सरकार मार्फत घेण्यात आला.ग्रीन झोन साठी लागू आहे.
केंद्रीय गृहमंत्रालयाने दिलेल्या निर्देशानुसार वाईन्स शॉपना परवानगी देण्यात आली आहे. मात्र ग्रीन झोनमध्येच ही परवानगी असणार आहे. तसेच वाईन्समधून खरेदी करण्या साठी काही नियमावली घालून दिली आहे. दुकानात एकावेळी फक्त ५ लोकांनाच उभे राहण्याची परवानगी असेल. तसेच दोन गिऱ्हाईकांमध्ये सहा फुटाचे अंतर ठेवावे लागणार आहे.
दरम्यान मॉल्स आणि मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स मधील वाईन्स शॉप्सना परवानगी देण्यात आलेली नाही. त्या व्यतिरीक्त इतर ठिकाणी असलेल्या दुकांना परवानगी देण्यात आलेली आहे. केंद्र सरकारने लॉकडाऊन आता १७ मे पर्यंत वाढवले असले तरी यादरम्यान ग्रीन झोन असलेल्या ठिकाणी ही दुकाने चालू करता येणार आहेत.
ग्रीन झोन मध्ये रोजगार पूर्वत करण्यात यावे.लॉकडाउन नागरिकांची आर्थिक परिस्थिति डाउन झालेली आहे.त्यात सरकारचा निर्णय हा प्रपंचासाथी विशेषता महिलासाठी त्रासदायक ठरणार आहे. नजदीक च्या काळात शाळाही उघडनार आहे.या साथी लागणाऱ्या खर्च ही मोठी चिंताजनक बाब आहे,असा सुर पालकातुन निघत आहे.

आम्हाला ऑरेंज झोन टोडायचे आणि ग्रीन मध्ये जायचे आहे!




                      आपला अहमदनगर जिल्हा
एक अपील सर्वासाठी,

आम्हाला ऑरेंज झोन टोडायचे आणि ग्रीन मध्ये जायचे आहे!

आपल्या अहमदनगर  जिल्याच्या सीमेवरील, पुणे, औरंगाबाद, ठाणे, सोलापूर नाशिक हे जिल्हे रेड झोन मध्ये आहेत तर अहमदनगर जिल्हा ऑरेंज झोन मध्ये आहे. 3 मे नंतर काही प्रमाणात सूट मिळेल पण काळजी घ्यावी लागेल, झुंबड करून नाही चालणार, तिन्ही बाजूच्या सीमेवर रेड झोन जिल्हे आहेत, काळजी घ्या, नाहीतर आपलं अहमदनगर जिल्हा पण रेड झोन होईल आणि पुन्हा पूर्ण लॉकडाउन सुरु होईल. काळजी घ्या. आम्हाला ऑरेंज झोन टोडायचे आणि ग्रीन मध्ये जायचे आहे.प्रवास शक्यतो टाळावा, गाव पातळीवर कामे करावी, जिल्हा बाहेर प्रवास बंद असेल, लपून छपुन प्रयत्न करू नका, (नाहीतर पोलीस आहेतच ) आपल्या अहमदनगर च्या प्रशासन ने खूप छान काम केले आहे, त्याला आपण ही साथ देणे गरजेचे आहे, एक सुज्ञ नागरिक, व सुज्ञ अहमदनगरकर म्हणून आपली जबाबदारी पार पाडा. जास्त लिहीत नाही, बाकी ची काळजी, हाथ धुणे, अंतर ठेवणे, इ. आपण जाणता, लक्ष पूर्वक प्रयत्न करा.
                      आपलाच अहमदनगरकर.

                      फिरोज शेख (अहमदनगर)

Friday, May 1, 2020

रमजानुल मुबारक - ८ *कष्टात सवलत दयावी...*



                रमजानुल मुबारक - ८

              *कष्टात सवलत दयावी...*

पवित्र रमजान महिन्यांमध्ये प्रत्येक स्त्री पुरुषाने रोजे धरणे अनिवार्य आहे . रोजे धरून आपले दैनंदिन कामकाज केले जाते . उन्हाळ्याच्या दिवसांमध्ये चौदा ते पंधरा तासांचा रोजा धरणे तसे कष्टप्रद काम आहे . परंतु अल्लाहवरील श्रद्धा हे कष्ट लिलया पेलण्यास भक्तांना प्रोत्साहित करीत असते . रोजे धरून समाजातील अनेक लोक आपले दैनंदिन कामकाज पार पाडतात .
 या महिन्यात मालकांनी आपल्या रोजे धरणाऱ्या नोकरांना कामात सवलत द्यावी, फार कष्ट करण्यापासून थोडी मदत करावी आणि त्यांच्यावर वाजवीपेक्षा कामाचे जास्त ओझे टाकू नयेअशी शिकवण हजरत पैगंबरांनी दिली आहे.जी व्यक्ती रोजे धरून आपल्या कुटुंबाच्या चरितार्थासाठी दिवसभर कष्ट करते व सायंकाळी घरी येऊन आपल्या कुटुंबाबरोबर रोजा सोडते, अशा कष्टकऱ्यांना बद्दल ईश्वराला खूप आनंद होतो. कष्टाच्या कमाईतून ज्यावेळी असा रोजेदार रोजा ईफ्तार करतो त्यावेळी त्याचा आनंद गगनात मावेनासा असतो.रमजान महिन्यामध्ये आपले नियमित कामकाज करून अल्लाहची मनोभावे प्रार्थना केली जाते. ती करताना प्रार्थनेचे सर्व संकेत पाळले जातात. अल्लाह तआला ने  कुरआनमध्ये म्हटले आहे कि रोजा मेरे लिये है और मै ही उसका  बदला दूंगा, म्हणजे रोजाचा मोबदला साक्षात अल्लाह देणार आहे. त्यामुळे प्रत्येक जण अतिशय श्रद्धेने रमजानचे रोजे पूर्ण करण्याचा प्रयत्न करीत असतो.

 काल जगभरामध्ये कामगार दिन म्हणजे मजदूर दिवस साजरा करण्यात आला. मजूर आहेत म्हणून मालकाला महत्त्व आहे. मजूर नसते तर या जगाची अवस्था काय झाली असती.हजरत पैगंबरांनी मजुरांबद्दल अत्यंत दयाळू भावना व्यक्त केली आहे. ज्यावेळी एखादा मजूर  कष्ट करतो, त्यावेळी त्याचे संपूर्ण अंग घामाने भिजलेले असते.ज्यावेळी तो त्याचे काम पूर्ण करतो, त्यावेळी त्याला मजुरीची अपेक्षा असते. प्रेषित हजरत पैगंबरांनी म्हटले आहे की, मजुरांची मजुरी त्याच्या अंगावरील घाम सुकण्यापूर्वी आदा करा .इस्लामने कष्टकऱ्यांचा नेहमी आदर केला आहे. हजरत अबूबकर सिद्दिक ज्या वेळी खलिफा ( बादशाह )झाले.त्यावेळी त्यांना विचारलं गेलं की तुमची मजुरी (मानधन ) काय ?  ते म्हणाले की जे एका मजुराला दिले जाते तेच.त्या मजुरीत तुमचे भागेल का ?असा प्रश्न जेव्हा त्यांना केला गेला, तेव्हा त्यांनी उत्तर दिले कि जर नाही भागले तर मी आधी मजुरांच्या मजुरीत वाढ करील आणि नंतर माझे मानधन वाढविन .
आज आपण पाहतो की राज्यकर्ते धडाधड आपल्या फायद्याच्या सवलती सत्तेच्या जोरावर मंजूर करून घेतात . लोकप्रतिनिधींना लोकांची नाही तर स्वतःची जास्त काळजी वाटते . सत्तेचा फायदा स्वतःसाठी किती आणि कसा करून घेता येईल याकडेच सर्वांचा कल असतो . परंतु इस्लाम धर्माला हे मान्य नाही . लोकप्रतिनिधी हा जनतेचा सेवक असतो. त्याने जनतेची सेवा करायची असते. जनतेच्या सोयी-सवलती पाहायच्या असतात. ही शिकवण हजरत पैगंबरांनी दिली आहे.
दुसरे खलिफा हजरत उमर फारूक म्हणायचे कि दजला नदीच्या काठी जर एखादा कुत्रा भुकेने मरून पडला तर त्याची जबाबदारी उमर वर राहील . एवढी काळजी त्याकाळात घेतली जात होती . आजचे लोकप्रतिनिधी स्वतःचे कर्तव्य विसरले आहेत . परमार्था ऐवजी स्वार्थाला प्राधान्य दिले जात आहे . त्यामुळे ईश्वर, अल्लाह नाराज झाला असून कोरूना सारख्या आजाराच्या रूपाने तो आता आपल्या मागे लागला आहे. हे लक्षात ठेवले पाहिजे. त्यांची नाराजी दूर करण्याचा प्रत्येकाने प्रयत्न केला पाहिजे.गोरगरीब, कष्टकरी, लाचार, मजबूर अशा घटकांना न्याय मिळवून दिला पाहिजे. ( क्रमशः)
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

पुस्तक चाळताना.....



पुस्तक चाळताना.....

आज हातात एक २००४ चे एक विशेषांक हाती आले,पाने चाळताना मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे यांनी लिहिलेला 'धाकटा भाऊ' या लेखातील चौकटी वर गेली.
             जेम्स बॉन्ड, मी आणि राजा
राज्यात शिवसेना - भाजपाच सरकार असताना मला आणि राजाला चांगलीच सिक्युरिटी होती.बऱ्याच दिवासात जेम्स बॉन्डचा पिक्चर आम्ही दोघांनी बघितला नव्हता आणि योगायोगने तो बान्द्रयालाच एका टॉकीज मध्ये लागला. मी आणि राजा दोघेही तो बघायला गेलो.सुरक्षाव्यवस्थे मुळे थिएटर सार रिकाम होत. आम्ही सीटवर जाऊन बसलो. पिक्चर सुरु झाला आणि नंतर पब्लिकला थिएटर मध्ये सोडायला सुरवात झाली.थिएटर मध्ये पोहचायाच्या आत सिनेमा सुरु झाल्याच पाहुन पब्लिक वैतागल.आरडाओरड सुरु झाली.शिटया वाजु लागल्या, जेम्स बॉन्डचा पिक्चर म्हणजे सुरु झाला.शिटया वाजु लागल्या जेम्स बॉन्डचा पिक्चर म्हणजे सुरवात कधी चुकवू नका आणि शेवट कोणाला सांगू नका. अस जाहिरातीच म्हटलेल असत.मग लोकाग्रहास्तव लोकांना पुन्हा पहिल्यापासून पिक्चर दाखवण थिएटर मालकाला भाग पडले आणि आम्हा दोघांनी जेम्स बॉन्डची सुरवात बघायचा आनंद दोनदा लूटला!"

न्यूज व्हलुज

रमजानुल मुबारक - ७ *कोरोना आणि वजु*






रमजानुल मुबारक - ७

*कोरोना आणि वजु*
इस्लाम धर्माच्या मूलतत्त्वांमध्ये नमाज हे एक महत्त्वाचे तत्त्व आहे. दिवसातून दररोज पाच वेळा प्रत्येक मुस्लिम नागरिकांना नमाज पठण केले पाहिजे अशी शिकवण हजरत पैगंबरांनी दिलेली आहे.सकाळी फजर, दुपारी जोहर, सूर्यास्ता पूर्वी असर, सूर्यास्ताच्या वेळी मगरिब आणि रात्री ईशा. अश्या पाच वेळी नमाज दररोज पठण केली जाते. नमाजसाठी पूर्वतयारी म्हणून प्रत्येक वेळी तोंड हात पाय धुतले जातात त्याला वजू करणे असे म्हणतात. साडेचौदाशे वर्षांपूर्वी रुढ झालेली ही प्रथा आज कोरोनाच्या पार्श्वभूमीवर किती योग्य आहे याची प्रचिती सध्या येत आहे. कोरोना आजारापासून बचाव करण्यासाठी प्रत्येकाने वारंवार आपले तोंड, हात, नाक धुतले पाहिजे असे डॉक्टर वारंवार सांगत आहेत. कारण कोरोनाचे विषाणू हात ,नाक ,तोंडावाटे घशात जाण्याची शक्यता जास्त आहे.प्रत्येक नमाज पूर्वी याच पद्धतीने शरीराच्या या नाजूक व महत्त्वाच्या अवयवांची स्वच्छता केली जाते. यामध्ये तीनवेळा हात धुतले जातात, तीनवेळा तोंड धुतले जाते, तीनवेळा नाकात पाणी टाकून धुतले जाते, घोट्यापासून खाली पाय धुतले जातात. दिवसातून पाच वेळा अशी स्वच्छता केल्यानंतर शरीराच्या या सर्व भागावर कोणत्याही प्रकारचे विषाणू राहत नाही. म्हणजे कोरोना च्या निमित्ताने आज जे वैद्यकशास्त्र सांगत आहे तीच गोष्ट साडे चौदाशे वर्षांपूर्वी हजरत पैगंबरांनी सांगून ठेवलेली आहे.

कोरोनासारखे अनेक व्हायरस आपल्या अवतीभवतीअसतात. स्वच्छतेमुळे असे विषाणू नाश पावतात. म्हणून प्रत्येक वेळी प्रत्येकाने स्वच्छता अंगीकारली पाहिजे. नुसतं आपलं शरीर नव्हे तर आपला परिसर, आपण राहतो तो परिसर, आपण काम करतो तो परिसर, जिथे आपण वावरतो तो सर्व परिसर नेहमी स्वच्छ ठेवला पाहिजे. त्याने विषाणूंचा प्रसार न होता विविधआजारापासून मुक्ती मिळते. मुळात सर्व प्रकारचे प्रदूषण वाढीस लावण्याचं काम मानवजातच करीत असते. गेल्या महिनाभराच्या लॉकडाऊन मुळे वातावरण, रस्ते, नद्या आणि निसर्ग खूपच स्वच्छ झाला आहे. गाड्या बंद असल्यामुळे हवेतील प्रदूषण बंद आहे. पर्यटन बंद असल्यामुळे नैसर्गिक वातावरणातही स्वच्छता आहे. माणूस घरात असल्याने बाहेरची घाण कमी झाली आहे. तात्पर्य म्हणजे प्रदूषण पसरवणारा घटक म्हणजे माणूस. हे समीकरण आता उघड झाले आहे.

 वजू मुळे केवळ शरीर स्वच्छ राहत नाही तर आंतरिक मनात सुद्धा शुद्धतेची भावना निर्माण होऊन माणूस वाईट विचारांपासून अलिप्त राहतो. पाच वेळा नमाज पठण करणारी व्यक्ती कधीच वाईट मार्गाला जात नाही. म्हणून अल्लाहताला ने सदाचारा साठी नमाज निश्चित केली आणि नमाज पठण करण्यासाठी वजू अनिवार्य केले.प्रत्येक धर्माच्या ज्या चाली,रिती, परंपरा निर्माण झाल्या आहेत, त्यामागं अशी अनेक कारणे आहेत. कोरोनासारखे आजारापासून मुक्त राहण्यासाठी वजू करणे आवश्यक आहे.(क्रमशः )
*सलीमखान पठाण*
*9226408082*

*महाराष्ट्र पोलिसांचे कार्य मानवतावादी -मुफ्ती रिजवान*



*महाराष्ट्र पोलिसांचे कार्य मानवतावादी -मुफ्ती रिजवान*

*उम्मती फाउंडेशन तर्फे मास्क व सॅनिटायझरचे वितरण*

श्रीरामपूर (प्रतिनिधी ) समस्त मानव जातीवर कोरोना विषाणू संसर्गाचे संकट आले असून या आणीबाणीच्या स्थितीतही महाराष्ट्र पोलीस जीवाची पर्वा न करता कायदा व सुव्यवस्था राखण्याचे काम करीत आहेत. जनतेच्या रक्षणासाठी शासनाच्या आदेशाची अंमलबजावणी रात्रंदिवस राबून पोलिस प्रशासन करीत आहे . या संसर्गाचा धोका ओळखून ही प्रत्येकजण राबत आहे. पोलिसांमध्ये सुद्धा सहृदय माणूस असतो याची उदाहरणे या निमित्ताने राज्यभरात अनेक ठिकाणी पाहायला मिळाली .हे अस्मानी संकट असून यासाठी सर्वांनी मिळून प्रार्थना करूया त्याचबरोबर पोलिस प्रशासनाकडून  मिळणाऱ्या  आदेशाचेही पालन करून पोलिसांना सहकार्य करू या असे प्रतिपादन मुफ्ती मोहम्मद रिजवानुल हसन साहब यांनी केले . 

कोरोनाच्या पार्श्वभूमीवर सध्या सुरू असलेल्या लॉक डाऊन मध्ये ठीक ठिकाणी आपले कर्तव्य अहोरात्र पार पाडणाऱ्या पुरुष व महिला पोलीस कर्मचाऱ्यांना उम्मती फाउंडेशन' चे अध्यक्ष सोहेल बारुदवाला यांचेतर्फे सॅनिटायझर, मास्क व अल्पोपहाराचे वाटप मौलाना आझाद चौक तसेच बेलापूर रोडवरील चौकात करण्यात आले .त्या प्रसंगी मुफ्ती रिजवान यांनी आपले विचार व्यक्त केले .श्रीरामपूर शहर पोलीस स्टेशनचे पोलीस निरीक्षक श्रीहरी बहिरट व मुफ्ती रिजवान साहब यांच्या मार्गदर्शना ज्येष्ठ नगरसेवक मुजफ्फर शेख, पत्रकार सलीमखान पठाण, हाजी जलीलभाई काझी यांच्या हस्ते सर्व पोलिसांना हे साहित्य वितरण करण्यात आले. जनतेच्या सुरक्षेसाठी कर्तव्य बजावत असताना पोलिसांनी स्वतःच्या सुरक्षेच्यादृष्टीनेही योग्य ती दक्षता घ्यावी, अशा सूचना यावेळी उपस्थितांनी केल्या. समाजाचा व प्रशासकीय यंत्रणेतील महत्त्वाचा घटक हा पोलीस आहे. त्यांनी स्वत:चे आरोग्य सांभाळून इतरांच्या आरोग्यासाठी ही लढाई लढायची आहे. याकरिता प्रत्येकाने योग्य ती दक्षता घ्यावी. असे आवाहन ही मुफ्ती रिजवान साहब यांनी केले . हेड कांस्टेबल जोसेफ साळवे व इतर पोलिस कर्मचाऱ्यांचा यावेळी उत्कृष्ट कार्याबद्दल सत्कार करण्यात आला .सदरचा उपक्रम यशस्वी करण्यासाठी उंमती फाउंडेशनचे अध्यक्ष सोहेल बारूदवाला,डॉक्टर तोफिक शेख, फिरोज पठाण, युसुफ लाखानी,शाकीब पठाण, वसीम जहागिरदार, निरज शाह, माजिद मिर्झा, अलीम बागवान, शाहरुख बागवान, मोहसिन बागवान आदींनी विशेष परिश्रम घेतले .

कामगार दिन - देश तरक्की की रक्त वाहिनी ड्राइवर शापित कामगार !



शापित कामगार देश की रक्त वाहिनी ड्राइव्हर, देश के तरक्की के लिए वरदान है! क्या किसको हो सकता भला इनकार है ?


          १ मे दुनियाभर में जागतिक कामगारदिन मनाया जाता है.जब औद्योगिक क्रांति का आगाज हुआ,तो मजदूर एक जरूरत बडी जरूरत बनने लगी थी.जैसे जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में तरक्की होने लगी मजदूरो की भी जरूरत कारखानदारो को पडने लगी. औद्योगिक क्रांति के बाद कारखानदारी बड़ी साथ ही रोजनदारी भी बढने लगी. मजदूरों से कम दाम में १२घंटे या  १४ घंटे काम लिया जाने लगा.काम के आठ घंटे का किया जाये,रातमें और खतरोसे भरे कामो के लिए खास नियम बनाये जाये. काम के दाम नगद चाहिये, बाल मजदूरो पर पाबंदी हो,महिला मजदूर के कामोपर मर्यादा हो,हफ्ते की छुट्टी दी जाये.कारखानेदार मजदूरों की मांगें मानने को तैयार नही थे.इसीकारण मज़दूरोने बड़े आंदोलन खड़े कर दिये थे,.जिसमे अपने प्राणों की आहुति भी कई मज़दूरोने दी थी.मजदूर संघटनो ने दो आंतरराष्ट्रीय सम्मेलन लिए.१८९१ से १ मे आंतरराष्ट्रीय मजदूर दिन दुनिया के अलग अलग देशों में मनाया जाने लगा.भारत देशमें १ मे १९२३ से मजदूर दिन मनाया जाने लगा.साथ ही केरल और महाराष्ट्रमें ईन राज्योके निर्मिती के कारण केरला दिन और महाराष्ट्र दिनभी मनाया जाता है.
           हम हमारे देश के मजदूरों में ख़ासकर ड्राईवर की गर बात करे तो,जो देश के लिए रक्तवाहिनियों की तरह हो कर भी शापित सा क्यों है ? ये सवाल मन मे घर कर जाता है.औद्योगिक क्षेत्रमे ट्रांसपोर्ट सबसे अहम बात होती है और ट्रांसपोटेशन की रूह असल मे ड्राइवर ही होता है.ट्रांसपोर्ट में अंतर (डिस्टेन्स) और वक्त (टाइम) की कोई लिमिट ड्राइवर की नोकरी में नही होता.ड्राइवर के काम दिनरात और खतरोसे भरे होते है.देशमे औद्योगिकक्षेत्र नित नयी देशी विदेशी कंपनीयों पिछले कई दशकोसे बढी है.स्वाभाविक है कि ट्रांस्पोर्टटेशन भी बडा है,तो ड्राइवर पेशेकी जरुरत भी बड़ी है.इनसब के बावजूद ड्राइवरों की हालात हालातभरे ही है.इस बात से कोई इनकार नही करता.
          मुझे याद है, एक रोज मै हमारे शहर से बाहर इंद्रायणी होटल के पास  नींम के छाव में खड़ा हुआ था,सामने ही हाई वे पर  मोटरसाइकिल पर सवार दो नवजवानोंने ट्रकवाले को रोका और ट्रक के गुसकर मारने लगे. मै दूर से देख रहा था.बात समझमे नही आयी.साथ ही मैं शहर की तरफ निकल पड़ा.लगभग दो घंटे के बाद में चांदनी चौक में वही नवजवान उसी मोटरसाइकिल पर फिर एक ट्रकवालेको रास्ते के साइड में  रोककर ट्रक में चढते दिखायी दिये.

           मेरे मनमें शंका जागी. मैंने ट्रक का नंबर देखा, तो राजस्थान की ट्रक थी. मोटर -साइकिल पर नजर डाली तो नंबरप्लेट हाथसे टेडी करी हूई थी.ट्रक के केबिन के जा कर मैंने आवाज लगाई,देखा तो ड्राइवर को वो मार रहे थे और दो हजार रुपये की मोटर -साइकिल के नुकसान की मांग कर रहे थे.मेरी आवाज सुन नीचे उतरे और मुझसे कहने लगे,देखो चाचा इस ट्रकवाले टक्कर मारी,सुनते ही मैंने नवजवानों को दो दो झापडे जड़ डाली. यह याद दिलाकर के कुछ देर पहले इंद्रायणी होटल के सामने हाइवे पर भी ट्रक ड्राइवर को लूटा और यहाभी लूट रहे हो.बात अब के बड़ी अजीब थी.चौक में ट्राफिक पुलिस थी, रहदारी भी थी और ट्रक ड्राइवर की लूट हो रही थी.किसको खबर तक नही थी. ये इत्तेफाक ही था कि, मेरी दोनो वक्त नजर पडी. ऐसा रोज कई बार ड्राइवरो की लूट होती है, और मार भी खानी पड़ती है.
पुलिस और ड्राइवर के रिश्ते के किस्से यूनिवर्सिटी में इस सबजेक्ट को लेकर पीएचडी की जा सकती है. रास्ते पर बहोत ट्राफिक लगभग जाम थी.जिसमे एक लोडिंग ट्रक ट्राफिक पुलिस को दिखायी दिया. इनती सारी भीड़ में उसे रास्ते से बाजू रुकवाने को इशारे सीटियाँ फूक फूंककर करने लगा.ट्राफिक से ट्रक बाहर निकालना मुश्किल था.इसलिए ट्रक ड्राइवर धीरे धीरे ट्रक को आगे लिए जा रहा था.ताके ट्राफिक और जाम ना हो जाये.साथ ही चढान के वजह से ट्रक को रुकना ना मुमकीन था.ये मैं इसलिए जानता क्योंकि ट्रक के पीछे मैं भी ट्राफिक ने फंसा हुआ था.लगभग आधा किलोमीटर पर जाकर ट्रक ड्राइवरने रास्ते के साइड में लेकर ट्रक रुकवाई और ग़ुस्सेमे आकार बिना किसी सोंचे समझे हाथ के दंडे से ताकत से ट्रक के रग्गिल कांच (आसानीसे न फुटनेवाली) पर मारा के ट्रक की कांच टूट गयी. क्या कसूर था ट्रक ड्राइवर का ? रास्तेपर जब तक स्टेरिंग पर बैठा होता है.हर घटना का जिम्मेदार होता है.शिकायत किससे करे थानेदार के नजरमें भी गुनाहगार ड्राइवर ही होता है.
          एक हादसा ये भी हुआ था.सतरा साल का लड़का रात मोटरसाइकिल स्पीड अनकंट्रोलOOOOOO होनेपर डिवाइडर से टकराकर उछलकर दूसरे साइड गिर पड़ा सामने से आनेवाली ट्रक के निचे कुचल पड़ा. भिड़ने ट्रक को आग लगाई और ड्राइवर को मार डाला.अतिश्रम ड्रायविंग में ऑक्सीडेंट में जान चलीO जाती है, तब ये देखता और सुनता हूँ,तो ट्रक मालिक की हमदर्दी भी मिलती शिवाय इल्जाम के घरवाली बेवा होती है और बच्चे यतीम होते है. असंगठित होने के कारण ना कोई फंड, ना, ग्रजयूटी, विमा के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते है.अपाहिज होने पर सिवाय ऊपरवाले के कोई मददगार नही होता.
बहोत बार ड्राइवर पेशेसे बाहर निकलने की कोशिश करता,एक्के दुक्के निकल जाते है.लेकिन बहोत सारोको बढ़ती बेरोजगारी की मजबूरी के कारण फिरसे स्टेरिंग पर बैठना पड़ता. शापित ड्राइवर को इसलिए कहना पड़ता है. गाँव से लेकर शहर तक देशभर में सबसे ज्यादा तादाद उन्ही की है.और सबसे ज्यादा पीड़ित पेशा ड्राइवर का है.
यही शापित पेशा देश के तरक्की के लिए हम सब के लिए वरदान भी है. देश के हर घरमे  बेटा, भाई, बाप,चाचा, मामा कोई ना कोई करीबी रिश्तेदार ड्राईवर है, फिर भी हम कहा कद्रदान है.
देश के सारे ड्राइवरों को न्यूज व्हलुज का कामगार दिन पर सलाम हैं और ढेर सारे  हार्दिक हार्दिक शुभेच्छा


अफजल सय्यद,
एडिटर,न्यूज व्हलुज