Tuesday, May 5, 2020

"मेरी महबूब नानीअम्मा महबूबबी"


         "मेरी महबूब नानीअम्मा महबूबबी"

हर इंसान की जिंदगीमें बचपन की यादे अपना एक मकाम रखती है. अपनी हयाते जिंदगीमें कई बार वो याद कर कभी माँ बाप,भाई बहन,दादा दादी,नाना नानी,मामा मामी,चाचा चाची,खाला,फूफी,आसपड़ोस, गल्ली मौहल्ले, बस्ती,गाव, स्कूल,मास्टर,दोस्त,बिरादर इतना ही नही,नदी नाले,खेत खलियान,पेड़ पौधे,खेल कूद,बगीचे खेलके मैदान,मारपीट, मौजमस्ती, सन त्योहार,उरुस जत्रा,मांगनी ब्याह,बहोत सारे लमहात हम उसे सीने में छिपाए आजके कंप्यूटराइजड भाषा मे कहे तो सेव कर रखते है.जब इनमें से कोईभी कईभी मिल जाये,नजर आ जाये,इंसान उसे ओपन कर देखकर अपने आप को कुछ देर के लिए यादोमे खो देता है.ऐसी हरकते उम्र भर कई बार करता है, तुम हो या मै!
आज मुझे मेरा बचपन मुझको स्कूल व्हेकेशन याने आम जबानमे गर्मियों के छुट्टियों लेगया.आज सबेरे कुछ आठ से दस साल बच्चे अपने घर के सामने बॅट बॉल खेल रहे थे.कोई बॉल फेंक रहा था,कोई बॅट से जोरदार मारने की कोशिश कर रहा,पीछे खड़ा तीन पत्थर के पीछे का विकेटी(विकेटकीपर) जोर से उछलकर ऑउट ऑउट चिल्लाता और लग रहा था के,अब बैटिंग का नंबर उसका है.झटसे आकर बैटमैन के हाथोंसे बॅट छीनना चाहा,बैटमैन भी जो नॉटऑउट कहता हुआ आगे भागने लगा.इन हरकतों को देख, मैं अपने बचपन को कर गया.
मुझे मेरी नानीअम्मा याद आयी. जिनसे मेरे कई दिवाली व्हेकेशन हो या गर्मियों की लंबी छुट्टिया लगते शाम तक मैं एस टी बस पकड़कर अपने नानियाल! बस में बैठते ही ऐसा लगता,अल्लाउद्दीन का जीन आकर बिना कीसी पूछे,आँख की पलके झपकते नानीअम्मा सामने हाजिर करदे.दादी तो हमारे पैदाससे पहले गुजर चुके थे.नानीअम्मा को आँख खोलते ही देखना सुरु किया था.क्योकि में नानीयाल में पैदा होनेवाला नाती पोतों में अव्वल बच्चा था.नानी दुलारा, दिनमें से छोटी छोटी हरकतों पर कई बलाइयाँ लेती,नमक उतार कर नजर निकालना हर शाम का नानीअम्मा का रूटीन से होता था.इतना बडा होने तक नानीअम्मा अपने पल्लुसे उड़ाकर सुलाती थी और बहोत सारे किस्से कहानियां सुनाती. दोपहर धूप की गर्मी में खेलने मना कर देती.कभी कभार न सुनने पर कहती,दूसरे की जिम्मेदारी है बाबा तू,तुझे कुछ हो गया तो तेरे बाप से क्या कहूंगी मैं ? नानीअम्मा के बात का बहोत गुस्सा आता,जब वो मुझको दूसरे की जिम्मेदारी कहती. मेरी रोती सूरत को देखकर मुझको रिझाने के लिए कहती.तू तो सिर्फ मेरा है,ये सिलसिला कई सालोटक चलता रहा.नानीअम्मा की सब जान मुझमे थी.

नानीअम्मा को दीनी किताबे,अखबार पढने का शौक था,जब मैं स्कूलमे जाने लगा था तो मुझको दिनी और स्कूली पढ़ाती थी.साथ ही अच्छी तरबियत जो कुछ मुझमे है.अल्लाह का अहसान है.उन्ही की देन है.आज जो भी मैं लिखा रहा हूँ, या सामाजिक काम करता हूँ,नानीअम्माका भी बडा किरदार है. उनसे जुडी यादे,बिस्मिल्लाह पढाया,मकतब भेजा, स्कूल भेजा, पहला रोजा रखवाया, उरुस मेलेमें अपने कमर पर उठाकर फिराया,खिलौने,पापड़ मिठाइयाँ दिलवायी बहोत सारी नानीअम्मा से जुड़ी मेरी अपनी यादो से दिल रुकने को इजाजत ही नही दे रहा. मगर कही तो रुकना ही है. मेरी नानीअम्मा की मेरी दुल्हन भी ले आयी.आखिर आँखे नम इसलिए है के, माहे रमजान में ९वे रोजेको कई साल पहले दुनियाससे रुखसत हुयी.
नानीअम्मा नाम महेबुबबी जैसा था वैसी उनकी मिजाज थी.शांत ,कभी किससे ताउम्र किसीसे कोई झगड़ा नही.
ऊँची आवाज में बात नही. सदा मुस्कान चहरे पर रहती.
अल्लाह मेरी नानी के सभी गुनाह को बक्श दे.पुलसिरात के रास्ते आसान कर दे और जन्नतुल फिरदौस में आला मकाम आता करे (आमीन)

अफजल सय्यद,
एडिटर, न्यूज व्हलुज



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