Wednesday, November 18, 2020

खेलब चाहे जो भी हो मैदान में खेलना जरूरी है.मैदान , मोबाईल और हम.....



 खेलब चाहे जो भी हो मैदान में खेलना जरूरी है.मैदान , मोबाईल और हम.....

आप के सामने एक छोटे से वॉलीबॉल मैदान की तस्वीर है और कुछ बच्चे कहना मुनासिब नही,खिलाडी कहना ही बेहत्तर होंगा. जो मैदान की साफ सफाई करते नजर आ रहे है.ऐसे नजारे ,ऐसी हरकत बढ़ते हुए शहरीकरण के देखने ही नही मिलती.याने शहरे मैदानलेस बन गयी है या बसाई जा रही है.और जब शहरे मैदानलेस होंगी तो यकीनन बच्चो  के मस्ती की शक्लें भी बदलेंगी. बच्चा हसता खेलता नही,बल्कि चीड़ चिड़ा बन जायेगा.जिसके असरात आजकल के बच्चे में दिखते है.बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ गया है.

ये क्यों हो रहा है? 

मोबाइल! क्या ये सच है?

आज के दौर में मोबाइल एक गुमानी दुनिया,भरामवाली दुनिया, चमकीली दुनिया,वर्चुअल वर्ल्ड जिसका हर कोई मर्द हो या औरत,बूढा हो या बच्चा दीवाना बन गया है.घंटे नही बल्कि दिन दिनभर मोबाइल में मुब्तिला रहता है.इस हकीकत से इन्कार किसीको हो ही नही सकता.

मोबाइल फोन अब दूरदराज जे अपनो से या कारोबार की गरज तक सीमित नही है.मोबाइल ने दुनिया छोटे से स्क्रीन में  सीमित या कैद किया.साथ आश्रफुल या श्रेष्ठ कहे जाने वाले इंसानी बिरादरी को वश कहे या ताबे बचपन से करने लगा.कई माँ की शिकायत कहे,या मिजाजखोरी कहे कहती है,बच्चा हाथ मे मोबाइल होतो खाना खाता है.हाथ से मोबाइल ले तो चिल्लाचिल्ला कर रोता है.कई बच्चे को गुमानी दुनिया का कार्टुन मोबाइल पर लगा कर दे तो खामोश. बच्चो को मोबाइल ऐडिक्ट कराने में माँ का बड़ा किरदार नजर आ रहा है.एडिक्ट बच्चा अब कार्टून देखते देखते कॉर्टून का किरदार बन चुके है.तरबियत का सबक,संस्कार के पाठ पढ़ानेवाले के घर भी गुमानी मायाजाल से बचे नही.

जिसकी खास वजह है,बढते शहरीकरण के वजह से घटते मैदान और मोबाइल के गुमानी गेम जैसे कई सॉफ्टवेयर का मायावी कमाल.

अब हम को हम में जब टटोलने से पता चलता है.हमने अल्लाउद्दीन की चिरागसा एंड्रॉयड मोबाइल को समझ लिया और उसे खरीदने की चाह ने खुदको कर्जदार बना दिया.

हमने मोबाइल से सोशल मीडिया जे जरिये पाँच हजार फ्रेंड्स तो बनाए अक्सर को हम जानते तक नही.वक्त अपनो को नही दे पा रहे.जिसे जानते ही नही उन्हींसे चाट कर रहे है.

पिछले कई दिनोसे एक ही बात की चर्चा है.नवजवान बच्चे मोबाइल में फंसे हुए है.बस चर्चा ही चर्चा है.

हमारे मोहल्ले के हाल यही था.कुछ बच्चे  मिलकर मेरे पास आये.मोहल्ले जब शाम हम बच्चे एक जगह जमते है तो बहोत सारे मोहल्लेवाले ऐतराज करते है. मैंने हमारे मोहल्ले के पासके ओपन स्पेस में खेलने को कहा.बच्चे वहाँ जमाना और खेलना सुरु किया.बच्चे वॉलीबॉल खेलने लगे.कुछ वहाँ भी ऐतराज जताने लगे.बच्चे डंटे रहे.मोहल्लेवाले भी धीरे धीरे उनके साथ देने लगे.मैदान में वॉलीबॉल खेलने बाहर के मोहल्लेवाले भी जमने लगे.खेल में रंगत आने लगी.बहोत सारे बच्चे मोबाइल की वहमी दुनिया से दूर हो गए.अब वॉलीबॉल की चर्चा पूरे इलाके में होने लगी और धीरे धीरे एक से दूसरी जगह वॉलीबॉल के मैदान बनाकर खेलते हुए नवजवान दिखने लगे है.अब हमारे इलाकेमें 200 से ज्यादा बच्चे हर रोज खेलते  है.

आप जो फोटो देख रहे है, ये वो मैदान है.जिसके लिए नवजवान बच्चे काम करते हुए दिखाई दे रहे है.

फिक्र सब कर रहे है और कह रहे है,हमारे बच्चे मोबाइल में फंसे हुए है.इसलिए आनेवाले दिनोंमें हम सब को ये कोशिश करनी चाहिए.छोटे छोटे ही सही मैदान को अपने बच्चों को खेलने के लिए मैदान का इस्तेमाल करना चाहिए.खेल चाहे जो भी हो मैदान में खेलना जरूरी है.गर बात समझे ......


अफजल सय्यद, 

अहमदनगर.

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