Sunday, April 26, 2020

बच्चा बिगड़े तो मदरसामें और आदमी बिगड़े तो जमातमे ?



बच्चा बिगड़े तो मदरसामें और आदमी बिगड़े तो जमातमे भेजने की बाते करनेवाले, इनकी बदनामी पर हमारे खामोश ए जुबान क्यो ?


किसी भी धर्म,मजहब के बच्चे की तरबियत (संस्कार)की अव्वल जिम्मेदारी माँ बाप की होती है.इसीलिए कहा जाता है, माँ की गोद बच्चे का पहला मदरसा (शाळा). बाप की जिम्मेदारी तो बच्चे को अच्छा इंसान बनाने के हर मुमकिन अच्छी पढ़ाई याने अच्छा एज्युकेशन देना,जिससे वह अच्छी नौकरी,अच्छी तिजारत (बिजनेस),कर सके.एक अच्छा देशका नागरिक बन सके.
अपने आमदनी (इन्कम) के ऐतेबार से हर कोई अपने बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए हर माँ बाप कोशिश करते है.जब बच्चा,  वजह कोई भी हो दंगा फसाद,मस्ती करने की आदतसे बाज नाही आता तो मुसलमान माँ बाप बच्चेको मदरसेमे डालने की सोंचते है,अक्सर आम लोगोकी भी बच्चे के मदरसेमे डालने में  ही एक राय रखते है.क्योंकि मदरसेमे अच्छी तरबियत (संस्कार)दिये जाते है. आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति एक ब्राह्मण घर मे पैदा होने पर, उनके भाइयों समेत उनकी पढ़ाई मौलवीसाहब मकतब में देते है.उस वक्त भारत पर मुस्लिम हुकूमत नही बल्कि अंग्रेजी हुकूमत थी.सिर्फ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ही नही कई हिंदु दानिशमंदो (विचारवंत) की पढाई मदरसे के मकतब में मौलियोने की है.इससे कोई इनकार नही कर सकता. डॉ. राजेंद्र प्रसादने अपनी आत्मकथा  में लिखा है और मदरसे में पढाई लिखाये ना घर्म भेद था ना जाती भेद था,ना कोई उच्च नीचता भेद था,मदरसा इल्म को पाने के लिए हर एक के लिए खुला था.लाला काशीराम चावला अंग्रेज शासन काल मे डिप्टी कमीशनर लुधियाना में थे.जिन्हें मकतब में मौलियोने पढाया था.जिन्होंने बहोत सारे किताबे लिखी मिसाले है.इस बात से ये साबित होता है.मदरसेमे शिक्षण पाने के किए धर्म देखा नही जाता था,तो जाहिर सी बात किसीभी धर्म विशेष के खिलाफ नफरतो भर धार्मिक शिक्षण नही दिया जाता था और अब भी नही दिया जाता है.आज आलमगीर मदरसे में बालूमामा लगभग ७५ से ज्यादा उम्र होने के बाद भी मदरसा छोड नही जाते.हिन्दू समाज के होने के बावजूद मदरसे की खिदमत में अबतक की उम्र बिता दी.मदरसे के भले कई ट्रस्टी बदल चुके है.बहोत सारे मदरसेसे पढाई खत्म कर जा चुके अलीम, हाफिज ,मुफ़्ती,कारी मदरसे में आते है,तो ख़ासकर बालूमामा से मिलते है, उनकी यादे को दोहराते हुए ,बडे आदर से उन्हें मिलते है.ऐसे बहोत सारी मिसाले देश भर में मिलेंगी.भारत के मदरसे आज भी देश की देश की एकता और अखंडता के लिए काम कर रहे है. बहोत से मदरसोमे धार्मिक पढाई के साथ साथ आधुनिक शिक्षण भी दिया जाता है,जिनमे डॉक्टर और इंजीनियर भी बन रहे है.जब मुझ जैसा इन सब को देखता है तो हैरत में पडता है ,जब मदरसे आतंकवाद के अड्डे है,ये  बार बार  गैर मुसलमानों को कहते सुनता हूँ और मिडियाने तो मदरसों के खिलाफ झूठ फैलाकर मुसलमानो को बदनाम करने का ठेका ही ले लिया है.दिल बडा दुखी होता है.आज भारतमे बहोत सारे मदरसोने क्वारणटाईन की इजाजत मदरसेमे दी है.
अक्सर किसीका जवान बेटा,भाई,साला जीजा,भतीजा,भांजा, करीब हो या दूर का रिस्तेदार,दोस्त बिरादर बुरी संगतमें बुरी लत(नशा) में पडता है.तो सब हमदर्दों की अक्सर राय एक ही होती है कि,बंदे को जमात (तबलीग जमात) में भेज दिया जाए.ताके बुरी संगत से दूर रहकर, जमातों में दिये जानेवाली
धार्मिक बयानों से प्रभावित हो कर बुरी लत छूट जाये. इस्लाम में नशाखोरी हराम है,हर बुरी आदत को साफतौर पर इस्लाम रोकता है.बड़े छोटो का इज्जत करना सिखाता है, माँ बाप के अदब व खिदमत सिखाता है.जमात वही काम करती है,जिसका आदेश कुरान शरीफ देता है,और आप सल्लाहो अलैही सल्लम ने हदीस शरीफ में बताई है.कुरान शरीफ में अल्लाह का आदेश है.बुराई को रोके भलाई की दावत दे.हदीसोसे मफ़हूम मालूम होता है.एक महिला आपके (स.अ.)पास बच्चे शक्कर न खाने की नसीहत दे.आपकी बात सुनकर वो शक्कर खाना बंद कर दे.आप ने महिलाको कुछ रोज बाद बुलवाया. बाद महिला बच्चा लेकर आयी. आप ने बच्चे को सक्कर न खाने की  नसीहत दी.महिलाने आपसे पूछा ,
"ये आप  उस रोज पहले भी कह सकते थे."
आप ने जवाब दिया."तब मैं भी खाता था.तो बच्चे को कैसे मना करता .अब मैंने पहले अपनी आदत को छोड़ा,इसलिए आज नसीहत कर रहा हूँ.".
 अल्लाह और अल्लाह के रसुल सल्लाहो अलैहि सल्लम का पैगाम जब लोगो तक पहुचाने का काम तबलीग जमात करती है,  तो क्या वो गलत काम कर सकती है.
क्या वो कोविड -19 को फैलाने का काम कर सकती है.जो इंसानियत के खिलाफ हो सकती है. इस्लाम और आप सल्लाहो अलैहि सल्लम ने इंसानियत को अमन और भाईचारे का पैगाम दिया है.और इस्लाम की तबकिग जमात समेत कई जमाते अमन और भाईचारे का पैगाम देश भर में देती है.
इस्लाम का प्रभाव मध्ययुग के कई संतो पर पड़ा है. पहले मदरसों और कोरोना में तबलीग जमात को टार्गेट कर बदनाम किया जा रहा है.मौलाना सादसाहब को भी  वेवजह बदनाम किया जा रहा है.अपनी सियासत के लिए ये बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है.ये कोई शिकायत नही पर सोचने की बात है,१३ मार्च को सरकारने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा भारत मे लॉक डाउन की जरूरत नही.अचानक १५ मार्च को दिल्ली सरकार ने लॉक डाउन की घोषणा की ,१४ मार्चसे मरकजमे इजतेमा सुरु हुआ था. १७ मार्च को ४०हजार तिरुपति मंदिर में फंसे थे.२२मार्च जनता कर्फ्यू,५ बजे रैलियां थालिया बजाते निकली,सब खामोश .२३ मार्च को मध्यप्रदेश सरकार बनी तब पार्टियां मनाई गई,जब सरकार गिराई गयी तब भी पार्टियां मनाई गयी. कोरोना बाधित के साथ नेताओंने पार्टियां मनाई.
असल प्रोब्लेम दिल्ली सरकार और दिल्ली पोलिस के बीच सही तालमेल न होने से बढ़ी.दिल्ली सरकार क्या कर रही दिल्ली पुलिस को पता नहीं और दिल्ली पोलिस क्या कर रही है दिल्ली सरकार को  नही. मरकज के बगलमें है पोलिस थाना.दिल्ली पोलिस केंद्र के इख्तियार में है.दोनोमे तालमेल नही या सियासत का बन गयी तबलीग जमात निशाना.गुप्तचर संगठन की रिपोर्ट हमेशा यही रही है.तबलीग जमात अमन पसंद संगठन है.
 भारतभर में लाखो की तादाद में बहोत सारे इज्तेमात होते है. वो सारे के सारे अमन के साथ होते है.सारे डिसिप्लिन के साथ होते है. बिना कीसी पुलिस बंदोबस्त के साथ.सारे इज्तेमा खुले मैदान में होते है मौलाना साद के अध्यक्षता मे होते है.कहिपर भी फसाद की कीसीभी तरह की दुर्घटना भी दर्ज नही होती है. ये क्या कोई जाहिल गवार कर सकता है? मीडिया अपने औकात से बाहर है.इस बात का दुख है.
ये हम सब भारतीयोंको सोंचने की जरूरत है.
सोचो मदरसेके तालीम (शिक्षण)से डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जैसा  राष्ट्रपति भारत को मिला ये जानते नही हम, तबलीग जमात का काम सैकड़ो वर्ष से चल रहा अमन और भाईचारे का इससे भी अनजान है हम. किसी नादानों की झूटी बातों में आकर क्यो भला गुमराह हो गये हो हम.हिन्दू ,मुस्लिम, सिख,ईसाई,बौद्ध,पारसी,जैन ये भारत की बगीया के शान है हम, ऐ शर पसंदों(नफरत फिलानेवाक़े)से झूठी राष्ट्रभक्ति दिखाकर बगिया को आपसमें लड़वाकर ना उजाडो तुम...
"बेतुकी बातो को नजरअंदाज कर,कोरोना को हराना है,सरकार जब तक लॉकडाउन न खत्म करे तब तक घरमे ही रहना है"
हकीकत से वाबस्ता कराने की एक कोशिश

अफज़ल सय्यद,
एडिटर,न्यूज व्हलुज.
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